मेरी डायरी के कुछ पन्ने सेक्स कहानियाँ
#1
हर इंसान की जिन्दगी ख़ास होती है और हर किसी के जीने का अंदाज अलग -अलग होता है, इसलिए हर किसी को अपनी जीवनी जरूर लिखनी चाहिए | दूसरा उससे कुछ पाता ही है , चाहे जीवन की राह हो या आनंद और मनोरंजन | इसलिए मै अपनी जिन्दगी के कुछ खास हिस्से आप लोगो के साथ बाँट रहा हूँ | मेरा नाम राजन है और मै लखीमपुर जिला (उ.प्र.) में रहता हूँ |
(१)
सबसे पहले आपको आज से १२-१३ साल पहले लिये चलता हूँ , उस समय मै दसवीं का एक्जाम देने वाला था | घर में केवल मै और मेरी माँ (कमला) रहती थी जिसकी उम्र उस समय ३९-४० साल थी | पापा का देहांत तक़रीबन १० वर्ष पहले हो चूका था ( वो कालेज में लेक्चरार थे ) | चूँकि मेरी माँ भी ग्रेजुएट थी इसलिए पापा के कालेज में ही पापा की जगह माँ को लेखा विभाग में नौकरी लग गयी | हम पांच भाई- बहन है | बड़ी बहन 'विभा' जो उस समय २४ साल की थी, जीजाजी के साथ दिल्ली में रहती थी | जीजाजी एक मल्टीनेशनल कम्पनी में उच्च पद पर कार्यरत थे |उनकी एक बेटी भी है जो ६ साल की थी | भैया उस समय २२ साल के थे और भाभी के साथ भोपाल में रहते थे | भैया से छोटी शोभा दीदी है जो उस समय २० साल की थी और जीजाजी के साथ कानपुर में रहती है| उनका कोई बच्चा नहीं था |छोटे जीजाजी, शोभा दीदी से तक़रीबन १० साल बड़े है, लेकिन माँ-बाप के इकलोते है और परिवार बहुत समृद्ध है| सबसे छोटी आभा दीदी उस समय १७ साल की थी और १२वी की टेस्ट देने वाली थी | चूँकि भाभी को बच्चा हने वाला था इसलिए आभा दीदी भैया-भाभी के साथ भोपाल में रह रही थी |

मै पढने में काफी तेज था और दसवीं में काफी अच्छे नम्बरों से पास होने की उम्मीद कर रहा था, वही पड़ोस में एक मोहल्ले की रिश्ते की बुआ पिछले २ साल से दसवी में फेल हो रही थी |तभी उसकी माँ, मेरी माँ के पास आकर बोली -बहु , जरा राजन को कहो ना क़ि वो श्यामली (बुआ का नाम ) को शाम को एक घंटा पढ़ा दे, पास कर जाएगी तो इस साल इसकी शादी कर देंगे | चूँकि परीक्षा में केवल तीन -चार महीने रह गए थे इसलिए मै बहुत आनाकानी के बाद शाम को बुआ के पास जाने लगा | दो - तीन दिन में ही मुझे पता चल गया क़ि वो दिमाग से पैदल है और दुसरे उसे बाते बनाने में बहुत मजा आता था | वो हमेशा कैजुअल ड्रेस में रहती जैसे नाइटी| गणित के सवाल में बुआ सामने से इतना झुक जाती क़ि आधे से अधिक मम्मे की गोलाइयों के दर्शन हो जाते| इतने में ही मेरा हलक सूखने लगता और पेट में गैस के गोले उठने लगते | उस समय घर में कोई नहीं होता था -उनका भाई यानि मेरे चाचाजी दूकान पर रहते और रात के दस बजे ही लौटते, उनकी भाभी प्रिगनेंट थी और मैके गयी थी और माँ शाम को मंदिर चली जाती | बुआ धीरे- धीरे मुझे सिड्यूस कर रही थी |
एक दिन जब मै बुआ के घर गया तो कमरे में घुसते ही सन्न रह गया | बुआ घाघरा और एक ढीली ढली टी- शर्ट पहने कुर्सी पर बैठी थी, बल्कि यूँ कहिये की वो अधलेटी थी | सर पर चुन्नी बाँध रखा था, पैर बिस्तर पर मोड़ कर अधलेटी थी | घाघरा जांघो को घुटनों तक ऊपर से तो ढका हुआ था पर नीचे से बिस्तर के सामने से पूरी नंगी दुधिया जांघे चमक रही थी ,बस जांघो के जोड़ के पास क्रीम कलर की मुड़ी पैंटी मदमस्त गदराई जवानी को ढके हुए थी, जिसे देखकर मेरा दिमाग सनसना रहा था | तभी मेरे मुह से निकल गया - क्या हुआ बुआ ? बुआ ने अपनी आँखे खोली और पैरो को नीचे करते हुए कमजोर आवाज में बोली - आ गए तुम ! देख न , मेरा पूरा शरीर दर्द कर रहा है और सर में भी बहुत तेज दर्द है | शो ख़त्म होने से निराश मै बोला - आज पढाई तो होगी नहीं , मै चलता हूँ|

बुआ : थोड़ी देर बैठ न , माँ कीर्तन में गयी हुई है २ घंटे से पहले नहीं आएगी , मै अकेली बोर हो जायूँगी | तू थोडा मेरी हेल्प कर और मेरे सर में बाम मल दे , वहाँ खिड़की पर बाम रखा है |
मै बाम लेकर बुआ के माथे पर धीरे-धीरे बाम मलने लगा , फिर बुआ ने दोनों कनपट्टी के पास हौले -हौले दबाने को कहा | मै कुर्सी के पीछे आकर दोनों अंगुठे से हलके-हलके कनपट्टी को दबाने लगा , इस क्रम में मेरी हथेली और उंगलियाँ बुआ के गालो को छु रही थी और कुर्सी के पीछे से गदराई चूचियो के नज़ारे मेरे अन्दर एक बिलकुल अनजान एवं नवीन उत्तेजना का संचार कर रहे थे और रोमांच से मेरा हाथ काँप रहे थे |
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#2
तभी बुआ ने कहा- राजन एक काम करेगा
मैंने पूछा- क्या बुआ ?
बुआ बोली - मेरे पुरे शारीर में दर्द हो रहा है , तू पैर और पीठ दबा देगा और इससे पहले मै कुछ जबाब देता वो पेट के बल जाकर बिस्तर पर लेट गयी | मै धड़कते दिल से जाकर अपना हाथ बुआ के पैरो पर घुटनों और टखनो के बीच मांसल हिस्से पर रखा | वहां हाथ रखते ही शारीर झनझना उठा , लगा जैसे बिजली के नंगे तारो को छु लिया , मैंने अपनी जिन्दगी में ऐसा चिकना , मुलाएम और गुदाज चीज को नहीं छुआ था | अब मै बुआ के पैरो को नीचे से जांघो तक दबाने लगा | अनुभवहीन होते हुए भी मानवीय प्रकृति मेरा मार्गदर्शन कर रही थी और मेरी कोशिश ये थी कि घाघरे को क्रमशः शरकाकर चुतरों के ऊपर कर दिया जाय |घाघरा धीरे-धीरे ऊपर शरक रहा था और मेरा हाथ जांघो कि गहराई नाप रहा था, तभी पैंटी कि झलक मिली और मेरी सांस भारी होने लगी | चूँकि बुआ थोडा भी बिरोध नहीं कर रही थी इसलिए मेरा साहस बढ़ रहा था | अब मैंने घाघरा रूपी दीवार को ख़त्म करने का निर्णय लिया और जांघो से पीठ कि तरफ बढ़ना शुरू किया | जैसे ही मेरा हाथ चुतरों पर पंहुचा मैंने उसे हलके से दबाया तो बुआ के मुंह से हल्की सिसकी निकल पड़ी | हाथ पीठ तक ले जाकर घाघरे को कमर के ऊपर कर दिया और फिर सीधा वापस जांघो पर आकर दबाना - सहलाना शुरू कर दिया | अब मै केवल जांघो के जोड़ो को और चुतरों को दबा रहा था , बीच - बीच में चुतरों कि दरारों में भी उँगलियाँ चला देता | तभी बुआ पलट गयी , अब वो पीठ के बल लेटी थी , आँखे बंद थी और गहरी साँसे ले रही थी |मैंने एक बार बुआ के चेहरे कि तरफ देखा और फिर अपना ध्यान अस्त-व्यस्त पैंटी से ढकी हुई पुए जैसी फूली हुई बुर कि तरफ केन्द्रित कर दिया |मैंने पैंटी के ऊपर से अपनी हथेली से बुआ के बुर को सहलाया, बुआ सिसकी .. | पूरी पैंटी भींगी हुई थी , पहले तो मै पूछना चाहा कि बुआ आपने थोडा मूत दिया है क्या ? फिर खुद ही मैंने प्रेम के अन्तरंग क्षणों में कुछ बोलना ठीक नहीं समझा | मै अहिस्ते -अहिस्ते सहलाता रहा , बुआ हौले -हौले सिसकती रही | तभी मैंने जोर से बुर को पूरी हथेली में भरकर दबाया और बुर के ऊपर से पैंटी को बगल में खिसकाकर अपनी एक ऊँगली बुर में घुसा दिया | बुआ चींखकर आधी उठ के बैठ गयी और मेरा दाहिना हाथ , जिसकी ऊँगली बुर के अन्दर थी , अपने बाएं हाथ से पकड़ लिया |वो मेरा हाथ हटा भी नहीं रही थी , उसकी आँखे नशीली , मुह खुला हुआ और होंट सूखे थे |कुछ देर तक वो मुझे ऐसे ही देखती रही और अचानक मेरे गले में बाहें डालकर मेरे होटों पर अपने होंट रखकर मुझे चूमने लगी | फिर मुझे अपने ऊपर गिरा कर खुद लेट गयी | उसकी दोनों टांगों के बीच मेरा कमर था जिसके ऊपर उसने अपनी टांगो को उठाकर मेरे पैरो के इर्द-गिर्द लपेट रखा था | ऐसे में मेरा लंड जो पहले ही वासना में फुफकार रहा था , अपनी पहली सखी 'बुआ की बुर' को इतना नजदीक पाकर मचलने लगा और कपड़ो के अन्दर से ही उसे अपनी कठोरता का एहसास दिलाने हेतु हल्की-हल्की थपकी देने लगा | बुआ की बांहों का घेरा मेरी पीठ पर कस रहा था और नरम चुंचियां मेरे सीने से रगड़ खा रही थी | हम दोनों एक - दुसरे के होंटों को चूसने लगे | मैंने अपने दोनों हाथो से उसकी दोनों चुंचियो को भींच रहा था और बीच - बीच में निप्पल को चुटकी से मसल देता , वो कसमसा रही थी
अब बुआ ने मुझे अपने ऊपर से गिराकर बगल में लिटा लिया और अपनाहाथ नीचे ले जाकर मेरे लंड को कपड़ो के ऊपर से सहलाने लगी और फुसफुसाई - राजन जल्दी कर ले नहीं तो माँ आ जायेगी | मैंने भी उनकी पैंटी को खीचकर पैरो से बाहर निकाल दिया | अब बुआ बिलकुल नंगी थी और मैं बुआ के चिकनी बुर को अपनी हथेली से सहला रहा था , फिर बुआ ने मेरा पाजामा ढीला कर मेरे लंड को बाहर निकाल लिया | लंड बाहर आते ही बुआ बिलकुल चौंक गयी और कूदकर बिस्तर से उतरकर खड़ी हो गयी और अपने मुह को हथेली से ढकती हुई बोली - हाय राम इतना बड़ा !! तुम आदमी हो ? तुम तो जानवर लगते हो | मैंने घबराते हुआ पूछा -क्या हुआ बुआ ? बुआ बोली इतना बड़ा लंड कहीं आदमी का होता है | मौका हाथ से निकलते देख मैंने समझाते हुए कहा - बुआ सबका इतना बड़ा ही होता है , आपने कौन सा किसी का देखा है | बुआ बोली - नहीं मैंने कई लोगो का देखा है खिड़की से बाहर सड़क पर पेशाब करते हुए , बाप रे तुम्हारा कितना मोटा और बड़ा है मेरी तो फट ही जायेगी | (मै मन ही मन सोचने लगा कहीं सचमुच कुछ गड़बड़, कोई बिमारी तो नहीं है , बचपन में जब आम के बगीचे में अपने दोस्तों के साथ जाता था तो सुसु करते समय उनका नूनी देखा करता था , उन सब से उस समय भी मेरा दूना था और सब मुझे गधा कहकर चिढाते थे , उसके बाद बड़े होने पर किसी के साथ तुलना करने का मौक़ा ही नहीं मिला, न ही अपना खुद कभी नापा ) फिर मैंने बुआ से प्रत्यक्ष बोला - कुछ नहीं होगा बुआ , सरसों तेल लगा के करूँगा देखना तुम्हे पता भी नहीं चलेगा | बुआ थोडा शांत होते हुए बोली -अब इस अबस्था में सरसों तेल लाने किचेन में कौन जाएगा , वहां ड्रेसिंग टेबल पर नारियल तेल है वही लगा लो | फिर मैंने नारियल तेल लगा कर लंड को चिकना कर लिया | बुआ टाँगे फैला कर लेट गयी और अपने प्रथम मर्दन का आँखे मूंदकर इन्तजार करने लगी |
मैंने लंड को बुर के छेद पर टिकाकर जोर लगाने लगा लेकिन हर बार असफल हो जाता | अब इसे मेरा अनारीपन कहिये या नारियल तेल की चिकनाई का कमाल या कुवांरी चूत के कपोतो का कड़कपन , मै चूत के अन्दर घुस ही नहीं पा रहा था | जिस सुरंग को पैंटी के अन्दर भी उँगलियों ने एक झटके में ही ढूंढ़ निकाला था उसी सहचरी सुरंग में मेरा लंड उसे देखकर भी नहीं घुस पा रहा था | कुवांरी चूत चोदने में कितना जोर लगता है पहली बार महसूस कर रहा था | फिर बुआ ने अपने हाथो से लंड को पकरकर एक जगह रखा और मुझे पेलने के लिए कहा | मैंने पूरा जोर लगाया ,लंड का सुपाड़ा चूत के कपोतो को चीरता हुआ अन्दर घुसा , बुआ चींखी .., पहले मैंने बुआ के मुह पर हाथ रखा और पेलना रोक लिया और बोला - चीखकर लोगो को इक्कठा करेगी क्या | फिर मैंने धीरे -धीरे एक चौथाई लंड बुर में घुसा दिया और उतने हिस्से को आगे पीछे करके चोदने लगा | बुआ सिसकने लगी .... फिर मैंने एक जोर का झटका मारा ... मेरा आधा लंड बुर की गहराई नापने लगा | बुआ फिर चीखकर दोहरी हो गयी और मुझे धक्का देकर गिरा दिया | चूत खून से सन गया था और खून की कुछ बुँदे मेरे लंड पर भी चमक रही थी | बुआ रोने लगी -हे भगवान् ! साले ने फाड़ दिया मेरी बुर को .. जानवर कहीं का | मैंने प्यार से पुचकारना चाहा वो मेरी तरफ गुस्से से देखी और एक कपड़ा लेकर अपनी बुर पर रखकर दबाने लगी | फिर उठकर फटाफट कपडे पहनकर बाथरूम में भाग गयी | मैंने भी अपने कपडे पहने और अपनी जल्दबाजी को कोसता हुआ अपने घर चला आया |
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#3
घर पर रात में मुझे लंड में काफी जलन महसूस हुआ , अगले दिन नहाते समय देखा की मेरा लंड कई जगह से छिल गया है और सुपाडे के ऊपर की चमड़ी भी ज्योइंट से कट गया है | दो दिन लगे उसे ठीक होने में | तीसरे दिन जब मै बुआ के घर शाम को गया तो उसकी माँ घर पर ही थी और उसने बताया की श्यामली बुआ के पाँव में तीन दिन से मोच है | बुआ कमरे में अभी भी मुझसे ठीक से बात नहीं कर रही थी | तीन - चार दिन तक ऐसा ही चलता रहा | फिर मुझे गुस्सा आ गया की शुरुआत तो उस ने ही किया था और नाराज मुझपर हो रही है इसलिए मैने उनके यहाँ जाना छोड़ दिया | एक हफ्ते बाद बुआ मेरे घर आई वो सलवार सूट पहने थी , मै ऊपरवाले कमरे में पढ़ रहा था और माँ कालेज गयी थी | मै टेबल से उठकर खिड़की पे चला गया और वहाँ से नीचे देखने लगा | बुआ मेरे नजदीक आयी और मेरे से सटकर खिड़की से बाहर देखते हुए बोली - राजन नाराज हो ? सौरी | उनके बालो की खुशबु मुझे मदहोश कर रही थी और उनकी बातो से पता नहीं क्या हुआ की मेरी सारी नाराजगी बह निकली और मैंने बुआ के पीछे आकर उनके गर्दन पर किस किया | फिर मैंने उन्हें पीछे से जकड लिया और दोनों हथेलिओ में उनकी दोनों चुचिओं को कपड़ो के ऊपर से पकड़ कर दबाने लगा और इधर मेरा लंड कड़क होकर उनके गांड के दरारों के बीच सलवार के ऊपर ही फिसलने लगा | फिर मैंने सूट के अन्दर हाथ डालकर ब्रा को ऊपर खिसका कर नंगी चुंचियो का मर्दन करने लगा | फिर एक हाथ सलवार-पैंटी के अन्दर घुसाकर बुर को मुट्ठी में भरकर भींचा और एक उंगली बुर के दरारों में चलाने लगा और होटों से उनके गालो को चूमने - चूसने लगा | बुआ की साँसे काफी गहरी चल रही थी और मेरे उंगलियो के ताल पर सिसक रही थी | अचानक वो पलटी और सामने से मुझे बांहों में भरकर मेरे होंटों को चूमने लगी | मैंने भी दोनों हाथ उनके चूतरों पर ले जाकर उसे जोर -जोर से दबाने लगा और अपनी उँगलियों से गांड के छेद को छेड़ने लगा , वो उत्तेजना में थरथरा रही थी | फिर मैंने बुआ को गोद में उठाकर बिस्तर पर लिटा दिया और सलवार एवं पैंटी को उतारकर गीली चूत को निहारने लगा | वो बोली इसे क्या देख रहा है मुझे बहुत शर्म आ रही है और तू अपना भी तो खोल | मैंने अपना लोअर उतारकर अपने खड़े लंड को बुआ के हाथ में पकड़ा दिया | वो बड़े प्यार से उसे सहलाने लगी और बोली देख ये तो मेरी मुट्ठी में भी नहीं आ रहा है और मेरी चूत अभी बहुत छोटी है , तू ऐसा कर ऊँगली पेल कर ही काम चला ले और मै भी हाथ से सहलाकर तेरा पानी निकाल देती हूँ | मैंने देखा बुआ अभी भी डर रही थी लेकिन मै भी चोदने की जिद पर अड़ा रहा और उनके हाथो से लंड को लेकर चूत के ऊपर रगड़ना शुरू कर दिया और चूत से बहते रस से लंड को सनकर चूत के मुहाने पर टिका दिया | अब मैंने लंड को धीरे धीरे चूत में सरकाना शुरू कर दिया | बुआ ने साँसे खीचकर आँखे बंद कर ली थी और बेडशीट को मुट्ठियों से भींच रखा था | थोड़े लंड के घुसते ही पीड़ा के कारण चेहरा लाल और ठण्ड के महीने में पसीने से तर-बतर हो गया | वो इसबार चीख तो नहीं रही थी लेकिन दर्द से हौले- हौले कडाहने लगी - आँ..आँ ....छोड़ दे ..बबुआ आ.आ आ और उसके आँख से आंसू गिरने लगे , फिर मैं उतने लंड से ही बुआ को चोदने लगा | उसने मुझे जकड लिया और लगभग दो मिनट बाद ही उनका शारीर अकड़ने लगा और वो मध्यम आवाज में चिल्लाई - आआह्ह्ह्ह.. मै गईईईईईईइ.. और तभी मैंने अपने लंड पर हल्का गरम फुहार महसूस किया जिससे मेरे अन्दर जैसे कुछ फूटने लगा और मेरे शारीर से कुछ निचुड़ कर लंड के मध्यम से निकलने लगा | ये था मेरा प्रथम वीर्यदान बुआ के चूत में |
इसके बाद हमलोगों को चुदाई का मौका ही नहीं मिला | परीक्षा काफी नजदीक आ गया था और मेरा घर पर दिन में सिर्फ मै रहता था इसलिए मेरा एक दोस्त कंबाइंड स्टडी के लिए मेरे पास आ जाता था | हाँ एक दिन अपने दोस्त के साथ अपने लिंगो की तुलना कर ही ली | उसका तो मेरा आधा ही था , हमने इंच टेप से नापा ...मेरा ८.५ इंच लम्बा और परिधि (गोलाई ) ९.४ इंच था जबकि उसका ५.२५ इंच लम्बा और ५.५ इंच गोलाई था | वो कहने लगा - यार तेरा बहुत बड़ा है, तू किसी कुवांरी लड़की को कर ही नहीं पायेगा | अब मै उसे क्या बताता की एक कमसिन कुवांरी लड़की को तो चोद ही चूका हूँ और आगे मौके नहीं मिलने से परेशान हूँ | बुआ के घर पर उसकी माँ जनवरी की ठण्ड की वजह से अपने घुटने के दर्द के कारण बाहर नहीं निकलती थी और मेरे वहाँ जाने पर वो भी हुक्का लेकर वहीँ दरवाजे पर बैठ जाती | इसलिए हमें मौका नहीं मिल रहा था , हाँ चालाकी से मौका देखकर उनके घर पर हमलोग एक दुसरे को सहला और दबा जरुर लेते थे | बुआ दरवाजे की तरफ पीठ करके कुर्सी पर बैठ जाती और मै सामने | वो सामने से बटन खोलकर चुंचियां बाहर निकाल देती और जैसे ही कोई आनेवाला होता तो मेरे इशारे पर फटाफट चुन्चियों को अन्दर कर लेती , मै बहाने से टेबल के नीचे कई बार झुकता और बुआ नीचे से नाइटी उठाकर और टाँगे फैलाकर अपने गुलाबी चूत के दर्शन कराती | मैं नीचे पैर के अंगूठे से बुआ के बुर के फांको को छेड़ते रहता और वो मस्ती में अपने होंटों को काटती रहती |मैंने टेबल के नीचे अँधेरे में देखने के लिए एक पेन-टॉर्च खरीद लिया था |बस इतना ही कुछ हो पता | इसी बीच हमने परीक्षा दिया और इधर बुआ की शादी ठीक हो गयी | ठीक उसी दिन मेरे ममेरे भाई की भी शादी थी | माँ मुझे उधर मामा के यहाँ जाने को कही क्योंकि गर्मियों की छुट्टी से पहले उन्हें कालेज का हिसाब - किताब क्लियर करना था लेकिन मैं बुआ को आखरी बार ठीक से देखना चाहता था | बुझे मन से मै मामा के यहाँ चला गया
पहले तो मामी ने माँ के नहीं आने काफी शिकायत की लेकिन मैंने जब उन्हें बताया की माँ गर्मियों की छुट्टी में आ जायेगी तो मान गयी | अगले दिन शादी थी , घर में काफी लोग आये हुए थे | रात को सारे मर्दों को सोने का इंतजाम दलान में था वो भी नीचे दरी पर , मुझे सारी रात नींद नहीं आयी |अगले दिन हम बारात के साथ छपरा( बिहार ) पहुंचे | चूँकि मेरे मामा को और कोई लड़का नहीं था केवल दो लड़कियां थी इसलिए दुल्हे का इकलौता भाई होने के कारण मेरा भी खूब आव - भगत हो रहा था | शादी की रशमो के दौरान दुल्हे की माँ - बहन – मौसी- बुआ को खुलेआम गालियाँ दी जा रही थी वो भी लाउडस्पीकर से , ये सब सुन के मै हैरान था और छिनाल एवं चुदाई जैसे शब्दों को सुनकर गनगना भी रहा था | तभी ख्याल आया की दुल्हे की बुआ तो मेरी माँ है और गालियों में उसे भी छिनाल , चुदक्कर आदि उपसंहारों से नवाजा जा रहा है .. माँ का गठीला बदन याद आया और उनके चुदने की कल्पना मात्र से ही शारीर में अजीब सा रोमांच भर आया | शादी के बाद हमलोग अगले दिन दोपहर तक वापस आ गए | दिन भर रश्मों - रिवाजो के बाद जब रात को सोने की बारी आयी तो मै परेशान हो गया , तीन रातों से मै ठीक से सोया नहीं था | मैंने मामी को बताया कि मै दालान में नहीं सोना चाहता | वहां बस तीन कमरे थे , एक दूल्हा- दुल्हन के लिए रिजर्ब था , एक में दहेज़ का सामन और फल-मिठाइयों का टोकरा ठुंसा पड़ा था और एक कमरे में संभ्रांत महिलायों का इंतजाम था | फिर मामी ने कहा - ठीक है , राजन तुम दुसरे कमरे में सो जाओ , घर में कम से कम एक मर्द तो रहेगा और तुम्हारे कमरे में रहते चोरों से सामन भी सुरक्षित रहेगा , यहाँ चोरों का बहुत हल्ला है | फिर मैंने बेड से सामन उतारकर इधर- उधर सेट किया , पलंग बहुत बड़ा था | फिर मैंने बिस्तर झाड़कर , कछुआ छाप जलाकर बिस्तर पर लेट गया | चूँकि कमरे में सामन लाने - ले जाने के लिए रुक-रूककर आवाजाही थी इसलिए दरवाजा सिर्फ भिड़ा दिया था , सोचा था जब सब शांत हो जाएगा तब दरवाजा बंद कर लूँगा | लेकिन लेटते ही जाने कब मुझे नींद आ गयी | हाँ , अर्ध-निद्रा में मुझे चूड़ियों की खनक और महिलायों के बोलने की आवाज आ रही थी लेकिन मेरी चेतना नहीं थी | एकाएक कुत्तों के भूंकने से मेरी नींद हलकी खुली तो मुझे चोरों का ख़याल आया , मेरा अर्धचेतन मन तुरंत सक्रिय हुआ और दरवाजे का ख़याल आया | मैंने पेन-टॉर्च निकालकर दरवाजे पर फोकस किया , दरवाजा अन्दर से बंद था | मुझे अच्छी तरह से याद था की मैंने दरवाजा बंद नहीं किया था फिर ये दरवाजा बंद हुआ तो हुआ कैसे ? फिर मै उठकर बैठ गया और बेड पर निगाह केन्द्रित किया तो मुझे कोई सोया जान पड़ा , वो कोई स्त्री थी | वो चित लेटी थी फिर मैंने टॉर्च जलाकर चेहरा देखा , वो मेरी बड़ी ममेरी बहन रागनी थी | शायद बिस्तर पर जगह देखकर और मुझे बच्चा समझकर मामी ने उसे भेज दिया था
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#4
उनका दायाँ पैर ( मेरी तरफ वाला ) मुड़ा हुआ था और साडी घुटनों तक उठी हुई थी , दूसरा पैर बिलकुल सीधा था जो जांघो तक नंगी थी | मैंने तुरंत टॉर्च बंद कर दिया और लेट गया | लेकिन चिकनी जांघो के झलक मात्र से नींद मेरी आँखों से कोसो दूर जा चुकी थी , मुझे बुआ याद आ रही थी | फिर मै अपनी ममेरी बहन रागनी के बारे में सोचना शुरू किया | वो २२ साल की थी और ६ साल पहले उनकी शादी हुई थी |२ साल पहले उनका २ साल का एकमात्र लड़का बिमारी की वजह से मर गया था | जीजाजी तक़रीबन एक साल से गल्फ में नौकरी करने चले गए थे |मैंने अपनी घडी देखा उससमय रात का १:१० बजा था | थोड़ी देर बाद मै उठकर पेशाब करने बाहर निकला , आँगन में कई सारी औरते अस्त-व्यस्त हालत में सो रही थी | चांदनी रात की चांदनी में ढेर सारी नंगी चिकनी जांघे और पिंडलियाँ देखकर मेरा लंड फनफना उठा ,पर उतने सारे औरतो के बीच नंगी अधेड़ जवानियों को देखने के लिए टॉर्च जलाने की हिम्मत नहीं पड़ी | कमरे में आकर दरवाजा आहिस्ते से बंद किया एवं बाहर वाली खिड़की के पल्लो को सटा दिया और रागिनी दीदी के पैर के पास खड़ा हो गया | फिर मैंने टॉर्च के शीशे के ऊपर हाथ रखकर जलाया ताकि रौशनी कम हो और चारो तरफ न फैले और उसका फोकस दीदी के पैर के बीच कर दिया | उनका बायाँ पैर जो बिलकुल सीधा था तक़रीबन जाँघों तक बिलकुल नंगी था और दायाँ पैर जो मुड़ा हुआ था वहाँ से साडी के नीचे एक गैप बन रहा था | मैंने टॉर्च उस गैप में बिलकुल साडी के नीचे कर दिया और बिस्तर के साइड में जमीन पर घुटनों के बल बैठकर अन्दर झाकने लगा | आह .... क्या नजारा था ... दीदी ने तो पैंटी भी नहीं पहना था ,जांघो के जोड़ के पास नीचे चुतर का थोडा उभार था जो उनके चूतरों के भी सौलिड होने की चुगली कर रहा था और उसके ऊपर बुर की हलकी दरारें दिख रही थी ,बस पेटीकोट का आखरी हिस्सा ऊपर से लटककर बुर के खुले दर्शन में व्यवधान डाल रहा था | मुझे डर भी लग रहा था आखिर रिश्तेदारी वाली बात थी पर दीदी की बुर देखने का यह सुनहला मौका हाथ से जाने भी नहीं देना चाहता था | फिर मैंने साडी को पेटीकोट समेत थोडा ऊपर करने की कोशिश की लेकिन जैसे ही मैंने थोडा खींचा वैसे ही दीदी थोडा कुनमुनाई | डर से कलेजा मेरे मुह में आ गया , मैंने फट से टॉर्च बंद कर दिया और हाथ बाहर खींच लिया और वहीँ बैठकर अपनी भारी चल रही साँसों को व्यवस्थित करने लगा | थोड़ी देर बाद उठकर बिस्तर पर अपने जगह पर जाकर लेट गया और सोंचने लगा कि अब क्या करूँ ?
तभी मुझे एक उपाय सुझा , मैंने अपना बायाँ पैर मोड़कर दीदी के मुड़े दायें पैर से सटा दिया | सहारा पाते ही उनका पैर मेरे पैर पर लदने लगा | फिर मैंने धीरे-धीरे अपने सटे पैर को वहां से हटाने लगा जिससे उनका पैर मुड़े -मुड़े ही बिस्तर कि तरफ झुकने लगा , फिर मैंने धीरे से अपना पैर वहां से हटा लिया |अब दीदी का एक पैर सीधा , दूसरा मुड़ा हुआ बिस्तर से सटा था और घुटने पर फंसा हुआ पेटीकोट अब कमर तक खिसक गया था | मैंने अनुमान लगाया दीदी अब पूरी नंगी है और मुझे उनकी बुर देखने में कोई परेशानी नहीं होगी | फिर मै उठकर बैठ गया और फिर टॉर्च जलाया ... हे भगवान् ! क्या सीन था ... हलकी झांटो से भरी बुर बिलकुल नंगी थी और बुर के पपोटे थोड़े खुले हुए थे | वैसे बुआ की कमसिन बुर और दीदी की खेली खायी बुर में बाहर से ज्यादा अंतर नहीं दिखाई देता था पर हलकी झांटो से भरी दीदी की सलोनी बुर बड़ी प्यारी लग रही थी | काफी देर तक मै वैसे ही बुर को निहारता रहा और पगलाता रहा | अब मुझे कंट्रोल करना मुश्किल होता जा रहा था , जी कर रहा था अभी दीदी के ऊपर चढ़ जाऊं और पेल दूँ | फिर हाथ बढाकर डरते डरते एक ऊँगली से बुर को छुआ ... जब कुछ नहीं हुआ तो हिम्मत करके ऊँगली को बुर की दरारों में फिराया | बुर मुझे काफी गरम लगी और ऊँगली में चिपचिपाहट का एहसास हुआ | टॉर्च से देखा तो बुर की दरारों से पानी निकल रहा था और रिसकर चूतरों की तरफ जा रहा था | हे भगवान् ! तो क्या दीदी जगी हुई है और मेरे क्रियाकलापों से उत्तेजित हो उठी है ,तभी तो चूत से पानी रिस रहा था | मैंने तुरंत टॉर्च को दीदी के चेहरे की तरफ जलाया | बंद आँखों में ही पलकों की हलकी मूवमेंट मैंने महसूस किया जैसे तेज रौशनी से जबरदस्ती आँखों को बंद कर रही हो | फिर ज़रा नीचे देखा , उनके ब्लाउज का ऊपर वाला हुक खुला था और गदराई बड़ी बड़ी चुंचियां आधी बाहर छलकी हुई थी और मस्त अंदाज में ऊपर नीचे हो रही थी | मैं कन्फर्म नहीं हो पाया की वो जगी या नहीं |मैंने टॉर्च बंद किया और सोंचने लगा की क्या करूँ क्योंकि अब मुझसे रहा नहीं जा रहा था | फिर मै अपने स्थान पर लेट गया और दीदी की तरफ करवट लेकर अपना एक हाथ दीदी के पेट पर रख दिया जैसे मैं नींद में होऊं | सहलाने की बड़ी इच्छा थी पर मै वैसे ही लेटा रहा, बस अपना पैंट नीचे कर लंड बाहर निकालकर उनके जांघो से थोडा दूर हटकर मुठीयाने लगा |
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#5
करीब दस मिनट बाद दीदी मेरे तरफ करवट बदली | मैंने फटाफट अपना हाथ लंड हटा लिया नहीं | करवट बदलने के साथ ही उन्होंने एक अपना पैर मेरे पैर के ऊपर रख दिया ....आह ... अब दीदी की नंगी बुर मेरे खड़े नंगे लंड से स्पर्श कर रही थी और उनका मुंह मेरे मुंह से बस इंच भर फासले पर था और उनकी गरम साँसे मेरे चेहरे पर पड़ रही थी ,साथ ही उन्होंने एक हाथ मेरी पीठ पर रख दिया था | अब उनकी बड़ी बड़ी चुंचियां अब मेरे सीने से दबी थी जिसका गुद्दाज एहसास अनोखा ही था | मेरा एक हाथ जो पेट पर था वो उनके कमर पर आ गया था ,जिसे मैंने थोडा नीचे खिसककर उनके चूतरों पर जमा दिया | थोड़ी देर तक मै बिना हिले डुले वैसे ही पड़ा रहा | मै सोंच ही रहा था कि अब कुछ आगे बढूँ तभी मैंने महसूस किया कि दीदी अपनी बुर को मेरे खड़े लंड बहुत हल्का -हल्का रगड़ रही है , लंड के सुपाडे पर हल्का दबाब बनता और फिर हट जाता ...फिर दबाब बनता ..और ये मै उनके चूतरों पर रखे हाथ से भी महसूस कर रहा था | अब शक कि कोई गुंजाइश नहीं थी कि दीदी जगी हुई थी और वासना के चरम पर चुदास से भरी हुईथी तभी अपने छोटे भाई के लंड पर अपना चूत रगड़ रही थी | समय बर्बाद करना वेवकुफी थी , मैंने अपना मुंह आगे बढाकर दीदी के होंटो पर रख दिया और उसे चूसने लगा और हाथ को और नीचे ले जाकर उनके नंगे चूतरों को सहलाने लगा और साथ ही चूतरों को अपने लंड पर दबाने लगा | अपने दुसरे हाथ से उनकी चुन्चियों को भी दबा रहा था | तभी दीदी अपने दोनों हाथो से मेरा चेहरा पकड़ कर मेरे पुरे चेहरे को चूमने लगी , वो मेरे गर्दन और छातियों को भी चूम रही थी और एक हाथ से अपनी ब्लाउज खोलकर अपनी नंगी चुंचियां मेरे मुंह में पकड़ा दिया , मै बच्चे कि तरह उसे चुसना शुरू कर दिया | अब वो सिसिया रही थी ... इ.इ.इ.श.श.श ... अब मैं उनके ऊपर चढ़ गया और एक झटके में अपने झनझनाते लंड को दीदी कि पनिआइ बुर में पेल दिया | वो चिंहुकी... आ..आ..आ..ह..हह....ज.ज..र.आ.आ..धी..रे.पेलो..भ. इ.या एक.. साल बाद चुद रही हूँ.......और तुम्हारा बहूत तगड़ा है .....ठी.क... है ..दी..दी तू..जै.से. .क..हे..गी वैसे .. ही चोदुंगा..ये कहते हुए मैंने धीरे धीरे दीदी को चोदना शुरू किया | कब मेरा पूरा लंड दीदी कि बुर में घुस गया पता ही नहीं चला , और जैसे ही मुझे पता चला कि पूरा लंड अन्दर घुस चूका है मैंने जोर जोर से चोदना शुरू किया | नीचे दीदी सिसकने लगी थी .. मा..र.. डा ला आ ..रे...बहनचोद .. इतना जबरदस्त चोदु निकलेगा .... ये तो सोचा ही नहीं ,..था ..मै तो गयी.. ई ...ई ..ई | इधर मैंने भी आठ दस धक्के लगाने के बाद दीदी कि बुर में ही झड़ने लगा | दीदी ने कसकर मुझे अपने बदन से चिपका लिया और झड़ने के काफी देर बाद तक मुझे अपने बांहों में समेटे रही |

थोड़ी देर बाद मैंने दीदी के चुन्चियों से खेलते हुए पूछा - दीदी तुम कब जगी ?
दीदी - तुम जब बाहर से अन्दर आकर दरवाजा बंद कर रहे थे , फिर तुम जब खिड़की बंद कर रहे थे तब मेरे मन में संदेह उठा की ये लड़का क्या कर रहा है ,फिर मेरा ध्यान मेरे साडी और पेटीकोट पर गया जो मेरे जांघो तक चढ़ी हुई थी , मैं अपने कपडे ठीक करने का सोंच ही रही थी की तुम मेरे पैरों के पास आकार खड़े हो गए ,फिर तुम झुककर टॉर्च से मेरी बुर देखने लगे , जी में आया की तुम्हे थप्पर मार दूँ लेकिन टॉर्च की मध्यम रौशनी में तुम्हारा वासना से तमतमाया चेहरा देखकर मन पसीज गया , मुझे अपने ऊपर गर्व हुआ और एक साल से मेरी अनचुदी बुर मचलकर गीली होने लगी ,मेरा दिल धड़कने लगा की तुम अगर मुझे चोदोगे तो मैं कैसे प्रतिक्रिया करुँगी ,फिर तुम जब मेरी बुर को अच्छे से देखने के लिए साडी और पेटीकोट को ऊपर उठाने का प्रयास कर थे तो मैं कुनमुना कर तुम्हारा काम आसान करने की कोशिश की लेकिन तुम डरकर वापस अपने जगह पर लेट गए ,मैं सोंचने लगी ये तो बड़ा डरपोक निकला तभी तुम अपने पैरो को मेरे पैरों से सटाकर उसे गिराने लगे तो मैं समझ गए की तुम क्या चाहते हो ,मैंने अपने हांथो से साडी को कमर तक उठाकर मैंने दोनों जांघो को छितरा दिया ताकि तुम जब दूसरी बार उठकर देखो तो मेरी फैली चुदासी बुर का आमंत्रण ठुकरा न सको लेकिन तुम तो जैसे मेरी धर्य की परीक्षा ले रहे थे बस ऊँगली बुर से सटाकर हटा लिया और फिर लेटकर अपना घुटना मेरी बुर से लगभग सटा दिया जो की मेरे बर्दास्त से बाहर हो रहा था ,मन कर रहा था की तुम्हारे ऊपर चढ़ जाऊं और जी भरकर अपनी बुर की प्यास बुझा दू इसलिए जब मैं तुम्हारी तरफ करवट बदली और तुमने अपना पैर सीधा किया तो मैंने महसूस किया की तुम्हारा लंड खडा है और नंगा है फिर मैंने अपनी बुर को तुम्हारे लंड पर धीरे धीरे घिसना शुरू किया तब जाकर तुम्हे सिग्नल मिला और तुमने मुझे बांहों में भर लिया और मुझे जिन्दगी की सबसे मस्त चुदाई का आनंद दिया |
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#6
दीदी की बात सुनकर मै फिर गरम हो रहा था और मेरा लंड तनने लगा था जिसे बड़े प्यार से दीदी सहला रही थी | वो बोली – एक बात है तुम बड़े जबरदस्त चोदु निकलोगे , मै तो सपने में भी नहीं सोंच सकती थी कि एक किशोर से लड़के का इतना बड़ा हथियार भी हो सकता है , एक ही बार में तुने मेरी बुर का हर अनछुआ कोना –कोना रगड़ दिया |
मैं बोला - दीदी मैं भी हैरान हूँ कि आपकी चूत मेरा सारा लंड गटक कैसे गयी , क्या जीजाजी का भी इतना ही बड़ा है ?
दीदी - नहीं रे ! उनका तो तुमसे थोडा छोटा ही है लेकिन तेरा उनसे दूना मोटा है , देख मै तेरा तो अपनी पूरी मुठ्ठी में भी नहीं पकड़ पा रही हूँ और मेरे देवर का तो तेरे सामने पिद्दी सा है , वो लंड भी दो साल से नसीब नहीं हुआ , दो साल से मेरा देवर भी काम के सिलसिले में बाहर रहता है अपनी बीबी के साथ , साला अब मुझे याद भी नहीं करता है , पिछली दिवाली में घर आया था , मैंने अपनी बुर को चिकना करके रखा था कि रात में किसी न किसी समय आकर मेरी बुर जरूर चोदेगा ,मै साड़ी रात अपनी बुर सहलाती रही परन्तु वो साला , बहनचोद , बीबी का गुलाम नहीं आया फिर मैंने अपनी उँगलियों से रगड़ कर ही अपनी बुर कि खुजली शांत क़ी |
मैं - दीदी आश्चर्य है क़ी लगभग साल भर से आपकी बुर चूड़ी नहीं है फिर भी आपने इतनी आसानी से मेरा पूरा लौड़ा ले लिया
दीदी - हंसते हुए ..ये सब बैगन और मूलियों का कमाल है |
घर में जब कभी मोटा बैगन , मूली या खीरा दीखता है तो मै जरूर उसे अपनी चूत में ले लेती हूँ |
दीदी की बातें सुनकर मेरा लंड फुफकारने लगा और मै दीदी के ऊपर चढ़ गया , दीदी ने भी अपनी पैरों को फैलाकर अडजस्ट किया और मेरा लंड पकरकर अपने हांथो से बुर के छेद पर भिड़ा दिया और मुझे छोड़ने केलिए बोली | मैंने जोर से ठाप मारते हुए अपना लंड दीदी की बुर में चांपा | दीदी आ ..आ ..ह .ह .ह करते हुए कराही फिर मैंने उनकी एक चूंची को अपनी हथेली में भरकर मसलने लगा और दूसरी चूंची को मुंह में भरकर चुभलाने लगा और जब मैं उनके निप्पलस को चुभलाते हुए दांतों से हलके से काटता साथ ही नीचे से जोर का ठाप मरता तो वो सिसकते हुए प्यारी झिडकी देती – इ.इ इ.....श श श .....धी .रे ..ब..ह..न …चो ..द. धी ..रे .. अपनी ..बहन .. को इतनी ..बे ..द अ .र .दी से .. ना ..चो …द …में ..री…फ ..ट…जा ..आ ..इ ...गी … मैंने भी दीदी को गालियाँ निकालना शुरू किया ..साली …. बुरमरानी…अपनी बूर तो पहले ही बैगन से फा ..ड़..चुकी है और ..भाई का लंड लेते हुए नखड़ा करती है ..रंडी ..आज तो मै तेरी बूर का कचूमर निकालकर ही दम लूंगा आ .आ …गालियाँ सुनकर दीदी काफी उत्तेजित होगयी और मेरी पीठ को अपने बांहों के घेरे में कस लिया और नीचे से चुतर उठा उठा कर मेरे करारे धक्को के साथ समन्वय बिठाने लगी फिर उनका शरीर अकड़ने लगा और वो झड गयी लेकिन मै अभी झडा नहीं था , झड़ता भी कैसे अभी थोड़ी देर पहले तो मैंने अपना पूरा माल उनकी चूत में निकाला था
इसलिए उसी रफ़्तार में उन्हें चोदता रहा |दीदी के झड़ने के कारण उनकी बूर काफी गीली हो गयी थी इसलिए मेरा लंड बिना किसी अवरोध के बुर के आख़िरी हिस्से तक चला जा रहा था और तब सुपाडे पर जो दबाब बन रहा था वो आनंद की चरम सीमा थी | कुछ ही देर में दीदी फिर गरम होकर अपना चुतर उछालने लगी थी और थोड़े पलों में ही फिर उनका शरीर अकड़ने लगा , मुझे लगा जैसे वो फिर झड रही है | चूँकि मै भी झड़ने को बेताब था इसलिए मै लगातार धकाधक पेले जा रहा था और वो लगातार अस्फुट शब्दों में बडबडबडाये जा रही थी ,उनकी आंखे बंद थी और मै उनके होंटो और गालों को चुसे जा रहा था ,वो थोड़ी देर मेरा साथ देती और फिर शांत हो जाती | फिर मेरा शरीर भी तनने लगा और मै झड़ने लगा ,मैंने अनुमान लगाया की मेरे झाड़ते –झाड़ते दीदी कम से कम 6/7 बार आ चुकी थी | फिर मै उनके शरीर से उतारकर चित्त लेटकर गहरी साँसे लेने लगा और दीदी अपने सूखे होंटो पर जीभ फेर रही थी फिर वो बिस्तर से उठी तो मैंने पूछा क्या हुआ ? वो बोली – पानी पीने जा रही हूँ | वो पानी पीकर कब लौटी मुझे पता नहीं चला क्योंकि मैं सो चुका था |
मेरी नींद खुली तो मैंने अपने लंड पर दबाब महसूस किया | सुबह के 4:30 बज रहे थे और दीदी मेरे ऊपर चढ़कर मेरे लंड पर उछल -उछलकर मुझे चोद रही थी | मैंने दोनों हाथ बढ़ाकर उनकी ऊपर नीचे होती गदराई चूंचियों को अपनी हथेली में भरकर मसलना शुरू कर दिया , बड़ा मजा आ रहा था , मुझे पहली बार महसूस हुआ की नीचे लेटने का आनंद क्या है | फिर दीदी थक कर , चोदना बंद करके आगे झुक कर अपनी चुचकों को बरी -बारी से मेरे मुंह में देने लगी जिसे मै चुभलाने लगा और अपने कार्यमुक्त हाथों को दीदी के चूतरों पर जमाकर उँगलियों से उनके गांड के छेद को कुरेदना शुरू कर दिया और नीचे से अपने कमर को उठा -उठा कर दीदी को चोदना चालु कर दिया | बीच -बीच में अपनी एक ऊँगली दीदी के गांड के छेद में पेल देता तो वो चिहुंक कर सिसक उठती … बड़ा मजा आ रहा था कि तभी बाहर से आवाज आयी - रागनी !! सुबह होने वाली है , खेतों में नही जाना है क्या , सारी रात भाई से चुदाते ही रहेगी क्या ??( औरतों का हुजूम खेतों में टट्टी के लिए उजाला फैलने से पहले जा रहा था ) मै घबराया कि इनलोगों को कैसे पता चला कि दीदी मेरे से चुद रही है , फिर ध्यान आया कि वो लोग भाभियाँ है और दीदी को मजाक में गालियाँ देने के लिए एसा बोल रही है | दीदी भी आवाज सुनते ही झट से कूदकर मेरे ऊपर से उतर गयी | मेरा लंड फ ..क .. कि आवाज के साथ दीदी के बुर से निकला और स्प्रिंग कि तरह उछलकर खडा होकर हवा में लहराने लगा | दीदी बिस्तर के बगल में खड़ी होकर अपना कपड़ा ठीक करने लगी और मुझे लंड ढकने का इशारा करने लगी | बड़ी मुश्किल से अपने खड़े लंड को दबाकर अपने पैंट में ठुंसा तब दीदी दरवाजा खोलकर उन औरतों के साथ बाहर चली गयी |
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#7
अगले दिन दहेज़ के सामानों की नुमाइश शुरू हुई फिर सम्बन्धियों के कपडे की बारी आयी तो मेरे हिस्से में धोती और कुरते का कपड़ा आया | दीदी , मामी और भाभियाँ हंसने लगी और बोली कुरता तो सिलके तैयार होगा , धोती अभी पहनो | उनके काफी जिद करने पर मैंने धोती लुंगी की तरह लपेट लिया ,फिर मैंने महसूस किया की धोती में काफी आराम रहता है इसलिए मैंने फैसला किया की रात को अब धोती ही पहनकर सोऊँगा | अगली रात भी दीदी मेरे साथ ही सोयी और मैंने उस रात उनको चार बार चोदा |तीसरे दिन से मेहमान सारे जाने लगे और मैं दुखी होने लगा की आज शायद मुझे मौक़ा न मिले | दीदी सचमुच उस रात मेरे साथ नहीं सोयी लेकिन मैंने दरवाजा अन्दर से बंद नहीं किया था , वो देर रात को आयी और बोली – राजन ! जल्दी से चोद ले भाई !! मेरा पेट दुःख रहा है , मेरा मासिक कभी भी आ सकता है | उसके बाद मैंने तूफानी गति से दीदी को पेलना शुरू किया फिर भी मेरे पलते -पलते ही उनका मासिक शुरू हो गया ,जब झड़कर मैंने अपना लंड निकाला तो उसपर खून की बुँदे चमक रही थी |
अगले दिन सारे मेहमानों के चले जाने के बाद मैंने भी जाना चाह तो मामी ने दो चार दिन और रोक लिया | दीदी भी मेरे जाने के बारे में सुनकर उदास हो गयी | तभी मेरे दिमाग में एक आईडिया आया की जीजाजी तो है नहीं , इसलिए दीदी को ससुराल जाने की कोई जल्दी तो नहीं है ,महीने दो महीने बाद जायेगी ,तो क्यों नहीं दीदी को भी साथ अपने घर माँ से मिलाने के बहाने ले चलूँ , वहाँ माँ के कालेज जाने के बाद हम दोनों घर में अकेले रहेंगे और जैसे चाहे मस्ती करेंगे | ये बात मैंने दीदी को बताया तो उनका उदास चेहरा खिल उठा | फिर वो मामी से मेरे साथ जाने की जिद करने लगी की पता नहीं बुआ ( मेरी माँ ) से फिर कब मुलाक़ात होगी | मामी के राजी होने के बाद तीसरे दिन दीदी चलने की तैयारी करने लगी | जाने से पहले वो कमरे में मेरे पास आयी और मेरे से फुसफुसाते हुए बोली –आज मेरा मासिक भी ख़त्म हो गया , मैंने फट से उनका गाल चुमते हुए साडी उठाकर अपना लंड उनके हलकी झांटो भरी बुर में पेलते हुए उनके कान में कहा – दीदी ! चूत चिकनी कर लो , चोदने में मजा आयेगा | वो मेरे लंड पर अपनी बुर ५-७ बार रगड़कर हटा लिया और फिर मेरा लंड उमेठते हुए बोली - हट बदमाश ! यहाँ नहीं वहीँ चिकना करुँगी | बस में मैंने उनसे पुचा -दीदी निरोध ले लूँ तो वो बोली – नहीं रे ! निरोध में मजा नहीं आता है , पुरे तीस दिन की गोलियां आती है , तू गोलियां ही खरीद लाना और एक हेयर रिमूवर भी ले आना |जब हम घर शाम को पहुंचे तो माँ दीदी को देखकर बहुत खुश हो गयी , फिर वो दोनों बात करने लगे और मै बाजार दीदी की चीजे खरीदने चल पड़ा |
बाजार से लौटते वक्त मेरा दोस्त समीर मिला ,हाल चाल जानने के बाद जब मै उससे पूछा कि वो आजकल क्या कर रहा है तो वो बोला – बस रिजल्ट का इन्तजार है , उसके बाद कालेज में एडमिशन लूंगा , आजकल सभी कि छुट्टियां है इसलिए वहां लौज (जहां ढेर सारे स्टुडेंट किराए पर रहते है ) में खूब धमाचौकारी होती है , हफ्ते में एक रात बी एफ आता है , आज भी आया है , इसी सब में मन लग जाता है | मैंने पूछा –यार ये बी फ क्या होता है ? वो मेरी ओर आश्चर्य से देखता हुआ बोला - यार बी एफ यानी ब्लू फिल्म .. तुम्हे नहीं पता ? उसमे बिलकुल नंगे होकर लड़का लड़की को चोदते हुए दिखाया जाता है | मुझे उसके कहे पर विश्वास नहीं हुआ कि बिलकुल नंगा कैसे दिखा सकता है , इसलिए पूछा – सच में ? उसने कहा – और नहीं तो क्या ? तुम्हे देखना है तो चल मेरे साथ मेरे लौज | मै आश्चर्य ओर कौतुहल के कारण उसके साथ चल पडा | वहां सचमुच वी सी आर आया हुआ था ओर सब लोग खाना खा रहे थे , उसके बाद बी एफ का प्रोग्राम होने वाला था , मै तब तक समीर के रूम में बैठ गया ओर वो खाना खाने चला गया , तभी मेरी नजर तकिये के नीचे एक पतली सी मैगजीन पर पडी , तकिया हटा कर देखा तो मैगजीन के साथ दो मटमैले रंग कि किताब भी पडा था जिसका शीर्षक था – मचलती जवानी ओर भींगा बदन , उसके लेखक के नाम पर मस्तराम लिखा था | पहले मैंने मैगजीन देखा जिसमे नंगे अंग्रेज लड़के लड़कियों कि तस्वीर थी , जैसे ही मैंने पन्ने पल्टे तो मै दंग रह गया – एक लड़की दो लड़कों के साथ मजे ले रही थी , एक उसे चोद रहा था दूसरा उसे अपना लंड चूसा रहा था , मुझे रोमांच हो रहा था साथ ही घिन भी आ रहा था कि पेशाब करने वाला लंड क्या चूसने कि चीज है ..छि.. छि! फिर मैंने कहानी कि किताब को पलटा –उसमे पहली कहानी एक रिक्शावाला का एक मेमसाब के साथ चुदाई का था और उसमे निरंतरता नहीं था क्योंकि अगले कुछ पन्नो में एक पठान एक गाँव कि छोरी को पेल रहा था लेकिन अगली कहानी एक भाई बहन कि चुदाई कि थी जिसे पढते पढते मेरा लौड़ा तनकर खडा हो गया फिर दुसरी किताब देखा जिसमे एक माँ बेटे का और दूसरी कहानी एक बहु का अपने ससुर के साथ चुदाई का था | मै सनसनाहट से भरता जा रहा था कि तभी समीर खाना खा कर कमरे में आया ओर मेरे हांथो में किताबे देखकर हँसने लगा | मैंने सकुचाते हुए किताबों को बिस्तर पर रख दिया ओर बोला – यार इसमें तो खुल्लम -खुल्ला लिखा है , मेरा तो खडा हो गया , तुम्हारा खडा होता है तो तुम क्या करते हो ? मुठ मारता हूँ और क्या ? फिर उसने मुझे मुठ मारना बताया और फिर मुझे बी एफ दिखाने ले गया | फिल्म में जैसा उसने बताया था वैसे ही बिलकुल नंगे लड़के लडकियां खुलेआम चुदाई कर रहे थे अंग्रेज लड़की लड़के का लंड चूसती तो लड़का भी अपनी जीभ निकालकर लड़की का बुर चूसता बल्कि एक सीन में तो तीन लड़के एक ही लड़की को पेल रहे थे …एक चूत चोद रहा था , दुसरा गांड मार रहा था और तीसरा अपना लंड चूसा रहा था | मुझे पहली बार एहसास हुआ कि औरतों कि गांड भी मारी जा सकती है ..मेरे मन ने कल्पना में उड़ान भरी कि मै तो इस सुख से अभी तक वंचित हूँ ..आज ही रात को दीदी कि गांड जरुर मारूंगा , मेरा मोटा है तो क्या हुआ मेरे जैसे ही मोटे मोटे लंडो को फिल्म में लड़की बड़ी आसानी से अपने कमसिन गांड में लील रही थी और दीदी कि गांड तो फिर भी चौड़ी है | फिल्म देखते देखते एक घंटे में ही मेरी हालत खराब होने लगी ..मुझे चूत कि तुरंत आवश्यकता महसूस हो रही थी इसलिए मैंने समीर को बुलाकर कहा –यार मै चलता हूँ , घर पर बोलकर नहीं आया हूँ और हाँ मुझे पढ़ने के लिए वो मस्तराम वाली किताबे और पिक्चर वाली बुक दे दो | उससे किताबे लेकर अपने कसमसाते -फुफकारते लंड को प्यार से पुचकारते हुए घर वापस चल पडा |
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#8
रात को खाना खाने के बाद माँ जब किचेन में बरतन रखने गयी तभी मैंने हेयर रिमूवर और गोलियां देते हुए दीदी के कान में फुसफुसाया कि तुम रात को मेरे पास आना मै दरवाजा अन्दर से बंद नहीं करूंगा (उनको भैया भाभी वाला कमरा मिला था जो माँ के कमरे के बाईं ओर था ओर मेरा कमरा माँ के कमरे के दाईं तरफ था )| फिर मै बेड पर लेटकर दीदी का इन्तजार करने लगा , इन्तजार करते करते मैंने मस्तराम कि बुक निकालकर फिर से एकबार भाई बहन कि चुदाई कि कहानी पढ़ा और पढ़कर अपने कसमसाते लौड़े को सहलाते हुए शान्त्वना देने लगा कि तू ज्यादा तड़प मत अभी तुझे दीदी कि रसीली चूत और मखमली गांड मारने को मिलेगा | अपने लंड को सहलाते सहलाते पता नहीं मुझे कब नींद आ गयी और जब नींद खुली तो देखा सबेरा हो गया है और माँ आँगन में झाडू लगा रही है और दीदी वही बरामदे में खड़ी है | मुझे उनपर बहुत गुस्सा आया कि वो रात को मेरे पास क्यों नहीं आयी फिर बाथरूम जाकर फ्रेश होकर ‘मोती ’ (हमारा कुत्ता ) को बाहर सैर कराने ले गया | लौटकर मै दीदी से बात करने का मौक़ा ढूंढने लगा पर दीदी थी कि माँ के साथ ही चिपकी चिपकी घूम रही थी , आखिर में नाश्ता करने के बाद दीदी को लंच बनाने को कहने के बाद जब माँ कालेज जाने लगी तो मेरा अंतर्मन खुशी से झूम उठा लेकिन जैसे ही मै बाहर का गेट बंद करके लौटा वैसे ही दीदी झट से बाथरूम में नहाने के लिए घुस गयी | मेरी उत्तेजना बढती जा रही थी साथ ही गुस्सा भी कि आखिर क्यों वो शरारत से मुझे खिंझा रही है | अगर छोटी होती तो शायद डांटता भी पर ये तो बड़ी थी , मुझे रह रहकर कल देखे फिल्म का सीन याद आ रहा था जिसमे एक प्रौढ़ शिक्षक अपने गर्ल स्टुडेंट कि गलती पर उसे बेंत से चूतरों को नंगा करके मारता है फिर प्यार से चूतरों को चुमते चाटते हुए पीछे से ही चूत को चूसना शुरू कर देता है फिर जबरदस्त ढंग से उस लड़की को पेलता है ,सीन याद करके ही मेरा लौड़ा निकर में तम्बू बना हुआ था |आखिर में लगभग एक घंटे बाद जब दीदी बाथरूम से निकली तो उसने अपने शरीर पर केवल टावेल लपेटे हुए थी जिसका उपरी शिरा बूब्स के बीच में कसा था जिसके कारण आधी से अधिक मदमस्त चूंचियाँ बाहर को छलक रही थी और निचला शिरा चूत को बस ढके था | मै लपककर उनके पास पहुंचा और उन्हें अपनी बाहों में भरना चाहा तो उन्होंने हाथ के इशारे से रोक दिया , वो कुछ बडबडा रही थी शायद शिवजी की आरती गा रही थी फिर वो टावेल में ही पूजा घर में चली गयी |
मै बाहर खडा कुंठित हो रहा था , जब वो बाहर मुस्कुराते हुए आयी तो मै उनके पीछे पीछे उनके कमरे की और चल पडा | पीछे से टावेल गांड को पूरी तरह से ढक भी नहीं पा रहा था , चूतरों का मांसल उभार नीचे से झलक रहा था | मै खींजकर रूखे शब्दों में बोला –दीदी ये क्या है ? तुम रातको मेरे पास क्यों नहीं आयी ?( तबतक दीदी झुककर अटैची से अपने कपडे निकालने लगी ..आ ..ह .. क्या नजारा था ..पीछे से दीदी की नशीली चूत बाहर को झांक रही थी जिसके साथ मिलकर उनकी मखमली गांड चार चाँद लगा रही थी ,चूत की फांके खुली हुई थी और अपने मर्दन का आमंत्रण दे रही थी | मै आगे बढते बढते रूक गया और वहीँ कुर्सी पर बैठकर नज़ारे लेने लगा )तब दीदी पहली बार खुलकर बोली – सॉरी भाई ,गलती हो गयी .. बुआजी के सोने का इन्तजार करते करते मुझे खुद ही नींद आ गयी | मै खींजकर बोला – तुम्हे पता है मै सारी रात लौड़ा हाथ में थामे किस तरह से तड़पता रहा हूँ और तुम बोलती है की गलती हो गयी ..गलती हुई है तो सजा भी भुगतनी पड़ेगी !!
वो मेरी तरफ घूमकर पलटी और अपने कमर पे हाथ रखकर बोली - मुझे हर सजा मंजूर है , मेरे राजा भैया !! बोलो क्या कहते हो ? मेरे मन में एक शैतानी चमक उभरी ..मै बोला -रूको मै अभी आता हूँ और कमरे से निकलकर सीधा बाथरूम गया और पेशाब करके अपने कमरे में आकर वेसलीन का डब्बा जेब में डाला और खिड़की के परदे का लकड़ी का डंडा निकला साथ ही मस्तराम एवं पिक्चर वाली बुक लेकर दीदी के कमरे में लौटा और फिर कुर्सी पर बैठ गया तथा डंडा हिलाने लगा | मेरे हाथ में लकड़ी का डंडा देखकर दीदी सहम गयी और बोली – भैया !! तुम मुझे मरोगे क्या ? (अपने सामने बड़ी उम्र की रिश्तेदार लगभग नंगी औरत तो डरते देख मेरा लंड फिर से तनतना उठा) मै थोडा कठोर और आदेशात्मक स्वर में बोला –दीदी तुम चुप रहो ! जैसा मै कहता हूँ वैसा करती जाओ ..थोड़ा आगे आओ ..वो थोड़ा आगे आयी तो मैंने आदेश दिया – अपना कान पकड़ो ! उसने कान पकड़ लिया , फिर मैंने डंडे को उसके बूब्स से सटाया और फिर टावेल के फोल्ड में फंसाकर खिंच दिया ..टावेल खुलकर नीचे जमीन पर गिर पडा | अब दीदी का संगमरमरी तराशा नंगा बदन मेरे सामने था , उनके हाथ कान पर थे और आँखे शर्म के कारण जमीन पे लगी थी ..जो बुर रात के अँधेरे में मेरे विकराल लंड से द्वन्द युध्ध करने का दुह्साहस कर सफलता पाई थी वही दिन के उजाले में अपने नंगेपन का एहसास कर जांघो के जोड़ में संकुचित होती जा रही थी | चूत को चिकना करके दीदी ने तो कमाल ही कर दिया था , वह अपने साइज से काफी छोटी लग रही थी ..बिलकुल १६ साल की लौंडिया की चूत की तरह …लगता ही नहीं था की इस चूत ने एक बच्चा पैदा किया है और तीन तीन लंडो का वार झेला है | मैंने डंडे के अगला शिरा को चूत के होतो को छुलाया ..वो चिहुंकी और मेरी तरफ होटों को काटते हुए देखने लगी | मै शुष्क स्वर में बोला - दीदी अपनी टाँगे फैलाओ ! जैसे ही उसने खड़े खड़े अपनी टाँगे फैलाई वैसे ही बुर के पपोटे खुल गए तब मैंने अपने डंडे को बुर के फांको के बीच फिराने लगा ..दीदी सिहर उठी ..हांलाकि लकड़ी का डंडा आवेश का कुचालक होता है फिर भी उस समय दीदी के रोम रोम का सिहरन डंडे पर महसूस किया जा सकता था ..मैंने आहिस्ते आहिस्ते डंडे को चूत की दरारों में फिराने लगा ..दीदी पूरी गरम हो चुकी थी , इस बात का अंदाजा ऐसे लग रहा था की जब मै डंडे के मूवमेंट को रोक देता तो वो खुद ही हौले हौले कमर हिला कर अपनी चूत को डंडे पर घिसने लगती और जब मैंने डंडा हटाया तो वो चूतरस से भींगा हुआ था |
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#9
दीदी जब बाथरूम से वापस आयी तो आते ही शिकायत करने लगी – ये क्या किया राजन ! सारा मुँह गंदा कर दिया , मुझे तो उलटी आ गयी | मै बोला कुछ नहीं , मेरी नजरें उनके पैरों के बीच सजी चिकनी बुर पर टिकी थी | अपनी लगातार निहारी जा रही बुर को देखकर शायद उन्हें कुछ शर्म महसूस होने लगी , तभी वो अपने पैरो को जोड़कर टेबल के किनारे दीवाल से सटकर खडी हो गयी | मै उनके पास जाकर उनके सामने घुटनों के बल बैठ गया , अब मेरी आँखों के ठीक सामने उनकी बुर थी और उसपर पानी की बुँदे चमक रही थी , शायद मेरे पैर के अंगूठे से झड़ने के कारण वो अपनी बुर को भी धो कर आयी थी | मैंने अपनी एक अंगुली से उनके बुर की दरारों को छेड़ा, उनके सारे शरीर में सिहरन दौड़ गयी फिर मैंने बोला – दीदी अपने पैरों को खोलो | उन्हें लगा की मै उनका बुर ठीक से देखना चाहता हूँ , उन्होंने टाँगे फैलाई , मैंने अपनी जीभ निकालकर उनकी बुर को चाटना शुरू कर दिया | दीदी मचल गयी , शायद उनकी बुर को पहली बार किसी खुरदुरी जीभ ने स्पर्श किया था , वो गनगना रही थी पर मै पूरी तन्मयता से उनकी बुर चाटते जा रहा था साथ ही अपने दोनों हाथों से उनके चूतरों को मसल रहा था , अचानक मेरे बाएं हाथ की बीच की उंगली उनके गांड के छेद से टकराया , वो उछल पडी और मेरे सर को पकड़ लिया और मस्ती में आकर अपनी बुर को मेरे मुंह से रगड़ने लगी | मैंने ऊँगली का दबाब गांड के छेद पर बनाया परन्तु वो अन्दर घुस ही नहीं पा रहा था | तभी मैंने अपनी जीभ को बुर के अन्दर घुसेड दिया , अब दीदी मस्ती में आँखे बंदकर सिसियाने लगी और मेरे सर को अपने बुर पर दबाने लगी | मैंने दायें हाथ को उनके चुतरों से मुक्त कर जेब से वेसलीन का ट्यूब निकालकर ढेर सारा वेसलीन अपनी उँगलियों में चुपड़ लिया और फिर हाथ को पीछे ले जाकर बाए हाथ की अँगुलियों में भी चुपड़ लिया और ढेर सारा वेसलीन उँगलियों से उनके गांड के छेद पर लगा दिया और फिर बीच की उंगली का दबाब छेद पर बढाया , इसबार बड़ी सरलता से मेरी उंगली बेआवाज छेद में घुस गयी | अबकी वो अपनी चीख रोक न सकी और चिल्लाई -आ ..आ ..ह ..ह .हह .......सा ..ला ..............मार …डा ..ला … रे ….पर मै रुका नहीं और ऊँगली के अन्दर बहार करने की रफ़्तार बढाता रहा बल्कि अब तो मै अपने दोनों हाथ की बीच की ऊँगली को एक साथ उनके गांड में अन्दर बाहर कर रहा था |वो लगातार बड़बड़ाये जा रही थी , अचानक उसने मेरे सर को अपनी पूरी ताकत से बुर पर दबाना शुरू कर दिया और कांपते हुए झड़ने लगी ..आ..ह.ह......मै ... ग...ई...ई...., उनके बुर से निकलता नमकीन पानी मेरी जीभ को तर कर रहा था | ये स्वाद मेरे लिए बिलकुल नया था , मै बुर से निकलते पानी की एक एक बूंद को चाट गया | फिर दीदी निढाल होकर बेड पर वैसे नंगी ही पसर गयी |
इस दौरान मेरा लंड निकर में तनकर दर्द करने लगा था , मैंने फ़ौरन अपना निकर निकालकर उसे मुक्त कर दिया | अब मेरा लंड अपने पुरे जोश में आकर हवा में लहराने लगा लेकिन उसकी सहेली बेदम हो सुस्त पडी थी | मैंने उनसे पुचा – दीदी इसका क्या होगा , वो हडबडाकर जल्दी से बोली – भाई .. अभी नहीं ! खाना खाने के बाद दोपहर को कर लेना , मै कहीं भागी थोड़े जा रही हूँ , अभी थोडा आराम करने दो , मुझे खाना भी बनाना है , ये कहते हुए वो पेट के बल लेट गयी , उसे लगा की बुर के ढक जाने से शायद मेरा जोश ठंडा पद जाएगा | परन्तु मै कहाँ माननेवाला था , खड़े लंड के कारण मै बेकरार था जो उनके मांसल गांड को देखकर और कड़क हो गया था | मैंने दीदी के गांड पर हाथ फेरना शुरू कर दिया | पहले तो वो थोड़ा इनकार करती रही - सोने दे भाई ! क्यों तंग कर रहा है ? पर मेरी उंगलियाँ गांड के दरारों में घुसकर छेद से टकराया तो वो शांत होकर मजे लेने लगी | गांड का छेद वेसलीन से गीला तो था ही इसलिए मैंने हाथ के एक अंगूठे को गांड में घुसाकर अन्दर बाहर करने लगा | अब दीदी के चुतरों ने थिडकना चालू कर दिया और स्वमेव ही बेड से उठने लगा | मैंने दुसरे हाथ के अंगूठे को भी धीरे धीरे उनके गांड में घुसा दिया | दीदी थोडा ऐंठी और हलके से कराही ….. पर मैंने उंगली चोदन जरी रखा , मै एक अंगूठे को बाहर निकालता तो उसी समय दुसरे को अन्दर पेलता…दुसरे को निकालता तो पहले को पेलता ..पुरे रिदम के साथ मै उनके नाजुक सी छोटी छेद को चौड़ा करने में लगा था ताकी लंड डालते समय दिक्कत ना हो | दीदी गरम होकर बडबड़ा रही थी - मै ..तो ..बच्चा …ही ..समझती ..थी …..सा …ला … पूरा …..ह ..ह ..रा ..मी …नि ..क ..ला ……में ..री ….गां..ड…..भी …न .ही ….छो..डा …..उनकी सेक्सी आवाज सुनकर मेरा तना लंड फुफकारने लगा | वेसलीन को लंड पे चुपड़कर अपने फनफनाते लौड़े को गांड के छेद पे टिकाया , दीदी को मेरे अगले हमले का एहसास हो चुका था परन्तु इससे पहले वो संभलती मैंने एक जोरदार झटका मारकर लंड को तकरीबन एक तिहाई गांड में पेल दिया ..वो जोर से चींखी …मैंने फ़ौरन पीठ पे झुककर अपने हाथों से उनका मुंह बंद कर दिया …वो गुं..गुं ..करते हुए मचलने लगी और गांड चुदाई के दर्द से बचने के लिए अपने पैरों को सीधा करने लगी जिससे गांड के छेद का छल्ला लंड पर कस गया , वो तुरंत दर्द से दोहरी होकर पुनः अपने गांड को उठाकर चुतरों को फैला लिया | दर्द से तो मेरा भी बुरा हाल था , उस लंड को दीदी के इस पोज से थोड़ा राहत मिला | फिर मैंने उनके मुह से हाथ हटाकर उनके उभरे चुतरों को पकड़कर धीरे धीरे लंड को अन्दर बाहर करने लगा और आहिस्ते आहिस्ते लंड को क्रमशः अन्दर सरकाने लगा | मेरे लंड पर खून की बुँदे भी चमक रही थी …पहले तो मै डरा, पर फिर सोचा शायद चूत की तरह गांड का भी शील होता होगा | मै धीरे धीरे अपने चोदने की रफ़्तार बढ़ा रहा था और अब दीदी भी गरम चुदासी होकर बडबड़ा रही थी – अ.आ.ज पहली बार मेरी गांड में कोई लंड गया है ….फाड़ डाल मेरी गांड को भाई … और जोर से …और जोर से …अब रोकना मेरे लिए बहुत मुश्किल था …मै झड़ने लगा …मेरे लंड से निकलता गरम गरम लावा दीदी की गांड को भरता चला गया …उनकी आँखे भी मस्ती में मुंदती चली गयी …मै निढाल होकर उनके बगल में लेट गया …दीदी की आँखे अभी तक बंद थी ..शायद अभी भोगी आनंद का लुफ्त उठा रही थी |
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#10
थोड़ी देर बाद दीदी बोली – राजन पैंट पहनो और अपने कमरे में जाकर सो जाओ
मै उनकी चुचियों से खेलता हुआ बोला - उं….रहने दो ..मै यहीं ऐसे ही तुम्हारी बाँहों में सोऊँगा….अभी तो तुम्हारी चूत मारनी बाकी है | वो हडबडाते हुए बोली - नहीं अभी नहीं …तेरा मन नहीं भरा क्या ? ….अभी तो मेरी गांड मार के हटा है …ये कहते हुए वो अपनी चूचियों से भी मेरा हाथ हटाने लगी |
मै बोला – अभी नहीं तो रात में तो दोगी
वो बोली - रात का रिस्क मै नहीं ले सकती …अगर बुआजी उठ गयी तो ..?
मै बोला - माँ नहीं उठ सकती …उन्हें हाई बी .पी . है और वो नींद की गोली खाकर सोती है …वो तो झकझोड़ कर उठाने पर भी नहीं उठती …

(मुझे छह महीने पहले की घटना याद आ गयी ..रात के करीब तीन बजे हलके भूकंप के झटके महसूस होते ही मै जागकर अपने कमरे से बाहर आँगन में आ गया …बाहर मोहल्ले में भूकंप – भूकंप का शोर मच रहा था …तब मुझे माँ की याद आयी तो दरवाजे से चिल्लाकर माँ को जगाने लगा ,तब भी माँ नहीं उठी थी ..तब मै अपने कमरे में जाकर अपनी और माँ के कमरे के बीच इंटरकनेक्टिंग दरवाजे को खोला ..(वो दरवाजा मेरी तरफ से ही बंद रहता है ..शायद माँ , ऐसी ही किसी इमरजेंसी को सोंचकर अपने तरफ से खुला रखती है ) और फिर माँ को झकझोड्कर जगाने लगा परन्तु उनकी नींद नहीं खुली …तब मैंने बड़ी मुश्कील से उन्हें बांहों में भरकर बिस्तर से उतारकर नीचे खडा किया ..(वो काफी भारी है ..उनके कुल्हे चौड़े हैं और बदन काफी मांसल है …उठाने के क्रम में उनकी गुदाज गोलाइयों ने मेरे सीने से मादक रगड़ खाई थी तब मुझे जीवन में पहली बार उत्तेजना का संचार हुआ था ..लेकिन उस समय मुझे केवल उन्हें सही -सलामत बाहर निकालने का ही ख्याल आ रहा था . .) जब मैंने उन्हें अपने कंधे का सहारा देकर थोड़ी दूर चलाया तब जाकर उनकी नींद खुली थी …बाहर शोर और बढ़ गया था ..बाहर निकलकर देखा तो तकरीबन सारे स्त्री -पुरुष अस्त -व्यस्त कपड़ो में ही बाहर निकले हुए थे …..)

फिर दीदी बोली – अच्छा !! चलो रात की बात बाद में सोंचेंगे …अभी तुम अपने कमरे में जाओ …
मै बोला - यहीं सोने दो न …यहाँ क्या दिक्कत है ?
वो बोली - अरे नहीं ! अगर कोई आया तो बिस्तर , तुम्हारी और अपनी हालत सुधारने में समय लगेगा कि नहीं ….और अगर देर लगेगी तो किसी को भी शक हो सकता है …
मै उनकी बात से सहमत होते हुए उठकर निकर पहनने लगा और जाकर अपने कमरे में सो गया ..
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