मेरी डायरी के कुछ पन्ने सेक्स कहानियाँ
#1
हर इंसान की जिन्दगी ख़ास होती है और हर किसी के जीने का अंदाज अलग -अलग होता है, इसलिए हर किसी को अपनी जीवनी जरूर लिखनी चाहिए | दूसरा उससे कुछ पाता ही है , चाहे जीवन की राह हो या आनंद और मनोरंजन | इसलिए मै अपनी जिन्दगी के कुछ खास हिस्से आप लोगो के साथ बाँट रहा हूँ | मेरा नाम राजन है और मै लखीमपुर जिला (उ.प्र.) में रहता हूँ |
(१)
सबसे पहले आपको आज से १२-१३ साल पहले लिये चलता हूँ , उस समय मै दसवीं का एक्जाम देने वाला था | घर में केवल मै और मेरी माँ (कमला) रहती थी जिसकी उम्र उस समय ३९-४० साल थी | पापा का देहांत तक़रीबन १० वर्ष पहले हो चूका था ( वो कालेज में लेक्चरार थे ) | चूँकि मेरी माँ भी ग्रेजुएट थी इसलिए पापा के कालेज में ही पापा की जगह माँ को लेखा विभाग में नौकरी लग गयी | हम पांच भाई- बहन है | बड़ी बहन 'विभा' जो उस समय २४ साल की थी, जीजाजी के साथ दिल्ली में रहती थी | जीजाजी एक मल्टीनेशनल कम्पनी में उच्च पद पर कार्यरत थे |उनकी एक बेटी भी है जो ६ साल की थी | भैया उस समय २२ साल के थे और भाभी के साथ भोपाल में रहते थे | भैया से छोटी शोभा दीदी है जो उस समय २० साल की थी और जीजाजी के साथ कानपुर में रहती है| उनका कोई बच्चा नहीं था |छोटे जीजाजी, शोभा दीदी से तक़रीबन १० साल बड़े है, लेकिन माँ-बाप के इकलोते है और परिवार बहुत समृद्ध है| सबसे छोटी आभा दीदी उस समय १७ साल की थी और १२वी की टेस्ट देने वाली थी | चूँकि भाभी को बच्चा हने वाला था इसलिए आभा दीदी भैया-भाभी के साथ भोपाल में रह रही थी |

मै पढने में काफी तेज था और दसवीं में काफी अच्छे नम्बरों से पास होने की उम्मीद कर रहा था, वही पड़ोस में एक मोहल्ले की रिश्ते की बुआ पिछले २ साल से दसवी में फेल हो रही थी |तभी उसकी माँ, मेरी माँ के पास आकर बोली -बहु , जरा राजन को कहो ना क़ि वो श्यामली (बुआ का नाम ) को शाम को एक घंटा पढ़ा दे, पास कर जाएगी तो इस साल इसकी शादी कर देंगे | चूँकि परीक्षा में केवल तीन -चार महीने रह गए थे इसलिए मै बहुत आनाकानी के बाद शाम को बुआ के पास जाने लगा | दो - तीन दिन में ही मुझे पता चल गया क़ि वो दिमाग से पैदल है और दुसरे उसे बाते बनाने में बहुत मजा आता था | वो हमेशा कैजुअल ड्रेस में रहती जैसे नाइटी| गणित के सवाल में बुआ सामने से इतना झुक जाती क़ि आधे से अधिक मम्मे की गोलाइयों के दर्शन हो जाते| इतने में ही मेरा हलक सूखने लगता और पेट में गैस के गोले उठने लगते | उस समय घर में कोई नहीं होता था -उनका भाई यानि मेरे चाचाजी दूकान पर रहते और रात के दस बजे ही लौटते, उनकी भाभी प्रिगनेंट थी और मैके गयी थी और माँ शाम को मंदिर चली जाती | बुआ धीरे- धीरे मुझे सिड्यूस कर रही थी |
एक दिन जब मै बुआ के घर गया तो कमरे में घुसते ही सन्न रह गया | बुआ घाघरा और एक ढीली ढली टी- शर्ट पहने कुर्सी पर बैठी थी, बल्कि यूँ कहिये की वो अधलेटी थी | सर पर चुन्नी बाँध रखा था, पैर बिस्तर पर मोड़ कर अधलेटी थी | घाघरा जांघो को घुटनों तक ऊपर से तो ढका हुआ था पर नीचे से बिस्तर के सामने से पूरी नंगी दुधिया जांघे चमक रही थी ,बस जांघो के जोड़ के पास क्रीम कलर की मुड़ी पैंटी मदमस्त गदराई जवानी को ढके हुए थी, जिसे देखकर मेरा दिमाग सनसना रहा था | तभी मेरे मुह से निकल गया - क्या हुआ बुआ ? बुआ ने अपनी आँखे खोली और पैरो को नीचे करते हुए कमजोर आवाज में बोली - आ गए तुम ! देख न , मेरा पूरा शरीर दर्द कर रहा है और सर में भी बहुत तेज दर्द है | शो ख़त्म होने से निराश मै बोला - आज पढाई तो होगी नहीं , मै चलता हूँ|

बुआ : थोड़ी देर बैठ न , माँ कीर्तन में गयी हुई है २ घंटे से पहले नहीं आएगी , मै अकेली बोर हो जायूँगी | तू थोडा मेरी हेल्प कर और मेरे सर में बाम मल दे , वहाँ खिड़की पर बाम रखा है |
मै बाम लेकर बुआ के माथे पर धीरे-धीरे बाम मलने लगा , फिर बुआ ने दोनों कनपट्टी के पास हौले -हौले दबाने को कहा | मै कुर्सी के पीछे आकर दोनों अंगुठे से हलके-हलके कनपट्टी को दबाने लगा , इस क्रम में मेरी हथेली और उंगलियाँ बुआ के गालो को छु रही थी और कुर्सी के पीछे से गदराई चूचियो के नज़ारे मेरे अन्दर एक बिलकुल अनजान एवं नवीन उत्तेजना का संचार कर रहे थे और रोमांच से मेरा हाथ काँप रहे थे |
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