मेरी डायरी के कुछ पन्ने सेक्स कहानियाँ
#3
घर पर रात में मुझे लंड में काफी जलन महसूस हुआ , अगले दिन नहाते समय देखा की मेरा लंड कई जगह से छिल गया है और सुपाडे के ऊपर की चमड़ी भी ज्योइंट से कट गया है | दो दिन लगे उसे ठीक होने में | तीसरे दिन जब मै बुआ के घर शाम को गया तो उसकी माँ घर पर ही थी और उसने बताया की श्यामली बुआ के पाँव में तीन दिन से मोच है | बुआ कमरे में अभी भी मुझसे ठीक से बात नहीं कर रही थी | तीन - चार दिन तक ऐसा ही चलता रहा | फिर मुझे गुस्सा आ गया की शुरुआत तो उस ने ही किया था और नाराज मुझपर हो रही है इसलिए मैने उनके यहाँ जाना छोड़ दिया | एक हफ्ते बाद बुआ मेरे घर आई वो सलवार सूट पहने थी , मै ऊपरवाले कमरे में पढ़ रहा था और माँ कालेज गयी थी | मै टेबल से उठकर खिड़की पे चला गया और वहाँ से नीचे देखने लगा | बुआ मेरे नजदीक आयी और मेरे से सटकर खिड़की से बाहर देखते हुए बोली - राजन नाराज हो ? सौरी | उनके बालो की खुशबु मुझे मदहोश कर रही थी और उनकी बातो से पता नहीं क्या हुआ की मेरी सारी नाराजगी बह निकली और मैंने बुआ के पीछे आकर उनके गर्दन पर किस किया | फिर मैंने उन्हें पीछे से जकड लिया और दोनों हथेलिओ में उनकी दोनों चुचिओं को कपड़ो के ऊपर से पकड़ कर दबाने लगा और इधर मेरा लंड कड़क होकर उनके गांड के दरारों के बीच सलवार के ऊपर ही फिसलने लगा | फिर मैंने सूट के अन्दर हाथ डालकर ब्रा को ऊपर खिसका कर नंगी चुंचियो का मर्दन करने लगा | फिर एक हाथ सलवार-पैंटी के अन्दर घुसाकर बुर को मुट्ठी में भरकर भींचा और एक उंगली बुर के दरारों में चलाने लगा और होटों से उनके गालो को चूमने - चूसने लगा | बुआ की साँसे काफी गहरी चल रही थी और मेरे उंगलियो के ताल पर सिसक रही थी | अचानक वो पलटी और सामने से मुझे बांहों में भरकर मेरे होंटों को चूमने लगी | मैंने भी दोनों हाथ उनके चूतरों पर ले जाकर उसे जोर -जोर से दबाने लगा और अपनी उँगलियों से गांड के छेद को छेड़ने लगा , वो उत्तेजना में थरथरा रही थी | फिर मैंने बुआ को गोद में उठाकर बिस्तर पर लिटा दिया और सलवार एवं पैंटी को उतारकर गीली चूत को निहारने लगा | वो बोली इसे क्या देख रहा है मुझे बहुत शर्म आ रही है और तू अपना भी तो खोल | मैंने अपना लोअर उतारकर अपने खड़े लंड को बुआ के हाथ में पकड़ा दिया | वो बड़े प्यार से उसे सहलाने लगी और बोली देख ये तो मेरी मुट्ठी में भी नहीं आ रहा है और मेरी चूत अभी बहुत छोटी है , तू ऐसा कर ऊँगली पेल कर ही काम चला ले और मै भी हाथ से सहलाकर तेरा पानी निकाल देती हूँ | मैंने देखा बुआ अभी भी डर रही थी लेकिन मै भी चोदने की जिद पर अड़ा रहा और उनके हाथो से लंड को लेकर चूत के ऊपर रगड़ना शुरू कर दिया और चूत से बहते रस से लंड को सनकर चूत के मुहाने पर टिका दिया | अब मैंने लंड को धीरे धीरे चूत में सरकाना शुरू कर दिया | बुआ ने साँसे खीचकर आँखे बंद कर ली थी और बेडशीट को मुट्ठियों से भींच रखा था | थोड़े लंड के घुसते ही पीड़ा के कारण चेहरा लाल और ठण्ड के महीने में पसीने से तर-बतर हो गया | वो इसबार चीख तो नहीं रही थी लेकिन दर्द से हौले- हौले कडाहने लगी - आँ..आँ ....छोड़ दे ..बबुआ आ.आ आ और उसके आँख से आंसू गिरने लगे , फिर मैं उतने लंड से ही बुआ को चोदने लगा | उसने मुझे जकड लिया और लगभग दो मिनट बाद ही उनका शारीर अकड़ने लगा और वो मध्यम आवाज में चिल्लाई - आआह्ह्ह्ह.. मै गईईईईईईइ.. और तभी मैंने अपने लंड पर हल्का गरम फुहार महसूस किया जिससे मेरे अन्दर जैसे कुछ फूटने लगा और मेरे शारीर से कुछ निचुड़ कर लंड के मध्यम से निकलने लगा | ये था मेरा प्रथम वीर्यदान बुआ के चूत में |
इसके बाद हमलोगों को चुदाई का मौका ही नहीं मिला | परीक्षा काफी नजदीक आ गया था और मेरा घर पर दिन में सिर्फ मै रहता था इसलिए मेरा एक दोस्त कंबाइंड स्टडी के लिए मेरे पास आ जाता था | हाँ एक दिन अपने दोस्त के साथ अपने लिंगो की तुलना कर ही ली | उसका तो मेरा आधा ही था , हमने इंच टेप से नापा ...मेरा ८.५ इंच लम्बा और परिधि (गोलाई ) ९.४ इंच था जबकि उसका ५.२५ इंच लम्बा और ५.५ इंच गोलाई था | वो कहने लगा - यार तेरा बहुत बड़ा है, तू किसी कुवांरी लड़की को कर ही नहीं पायेगा | अब मै उसे क्या बताता की एक कमसिन कुवांरी लड़की को तो चोद ही चूका हूँ और आगे मौके नहीं मिलने से परेशान हूँ | बुआ के घर पर उसकी माँ जनवरी की ठण्ड की वजह से अपने घुटने के दर्द के कारण बाहर नहीं निकलती थी और मेरे वहाँ जाने पर वो भी हुक्का लेकर वहीँ दरवाजे पर बैठ जाती | इसलिए हमें मौका नहीं मिल रहा था , हाँ चालाकी से मौका देखकर उनके घर पर हमलोग एक दुसरे को सहला और दबा जरुर लेते थे | बुआ दरवाजे की तरफ पीठ करके कुर्सी पर बैठ जाती और मै सामने | वो सामने से बटन खोलकर चुंचियां बाहर निकाल देती और जैसे ही कोई आनेवाला होता तो मेरे इशारे पर फटाफट चुन्चियों को अन्दर कर लेती , मै बहाने से टेबल के नीचे कई बार झुकता और बुआ नीचे से नाइटी उठाकर और टाँगे फैलाकर अपने गुलाबी चूत के दर्शन कराती | मैं नीचे पैर के अंगूठे से बुआ के बुर के फांको को छेड़ते रहता और वो मस्ती में अपने होंटों को काटती रहती |मैंने टेबल के नीचे अँधेरे में देखने के लिए एक पेन-टॉर्च खरीद लिया था |बस इतना ही कुछ हो पता | इसी बीच हमने परीक्षा दिया और इधर बुआ की शादी ठीक हो गयी | ठीक उसी दिन मेरे ममेरे भाई की भी शादी थी | माँ मुझे उधर मामा के यहाँ जाने को कही क्योंकि गर्मियों की छुट्टी से पहले उन्हें कालेज का हिसाब - किताब क्लियर करना था लेकिन मैं बुआ को आखरी बार ठीक से देखना चाहता था | बुझे मन से मै मामा के यहाँ चला गया
पहले तो मामी ने माँ के नहीं आने काफी शिकायत की लेकिन मैंने जब उन्हें बताया की माँ गर्मियों की छुट्टी में आ जायेगी तो मान गयी | अगले दिन शादी थी , घर में काफी लोग आये हुए थे | रात को सारे मर्दों को सोने का इंतजाम दलान में था वो भी नीचे दरी पर , मुझे सारी रात नींद नहीं आयी |अगले दिन हम बारात के साथ छपरा( बिहार ) पहुंचे | चूँकि मेरे मामा को और कोई लड़का नहीं था केवल दो लड़कियां थी इसलिए दुल्हे का इकलौता भाई होने के कारण मेरा भी खूब आव - भगत हो रहा था | शादी की रशमो के दौरान दुल्हे की माँ - बहन – मौसी- बुआ को खुलेआम गालियाँ दी जा रही थी वो भी लाउडस्पीकर से , ये सब सुन के मै हैरान था और छिनाल एवं चुदाई जैसे शब्दों को सुनकर गनगना भी रहा था | तभी ख्याल आया की दुल्हे की बुआ तो मेरी माँ है और गालियों में उसे भी छिनाल , चुदक्कर आदि उपसंहारों से नवाजा जा रहा है .. माँ का गठीला बदन याद आया और उनके चुदने की कल्पना मात्र से ही शारीर में अजीब सा रोमांच भर आया | शादी के बाद हमलोग अगले दिन दोपहर तक वापस आ गए | दिन भर रश्मों - रिवाजो के बाद जब रात को सोने की बारी आयी तो मै परेशान हो गया , तीन रातों से मै ठीक से सोया नहीं था | मैंने मामी को बताया कि मै दालान में नहीं सोना चाहता | वहां बस तीन कमरे थे , एक दूल्हा- दुल्हन के लिए रिजर्ब था , एक में दहेज़ का सामन और फल-मिठाइयों का टोकरा ठुंसा पड़ा था और एक कमरे में संभ्रांत महिलायों का इंतजाम था | फिर मामी ने कहा - ठीक है , राजन तुम दुसरे कमरे में सो जाओ , घर में कम से कम एक मर्द तो रहेगा और तुम्हारे कमरे में रहते चोरों से सामन भी सुरक्षित रहेगा , यहाँ चोरों का बहुत हल्ला है | फिर मैंने बेड से सामन उतारकर इधर- उधर सेट किया , पलंग बहुत बड़ा था | फिर मैंने बिस्तर झाड़कर , कछुआ छाप जलाकर बिस्तर पर लेट गया | चूँकि कमरे में सामन लाने - ले जाने के लिए रुक-रूककर आवाजाही थी इसलिए दरवाजा सिर्फ भिड़ा दिया था , सोचा था जब सब शांत हो जाएगा तब दरवाजा बंद कर लूँगा | लेकिन लेटते ही जाने कब मुझे नींद आ गयी | हाँ , अर्ध-निद्रा में मुझे चूड़ियों की खनक और महिलायों के बोलने की आवाज आ रही थी लेकिन मेरी चेतना नहीं थी | एकाएक कुत्तों के भूंकने से मेरी नींद हलकी खुली तो मुझे चोरों का ख़याल आया , मेरा अर्धचेतन मन तुरंत सक्रिय हुआ और दरवाजे का ख़याल आया | मैंने पेन-टॉर्च निकालकर दरवाजे पर फोकस किया , दरवाजा अन्दर से बंद था | मुझे अच्छी तरह से याद था की मैंने दरवाजा बंद नहीं किया था फिर ये दरवाजा बंद हुआ तो हुआ कैसे ? फिर मै उठकर बैठ गया और बेड पर निगाह केन्द्रित किया तो मुझे कोई सोया जान पड़ा , वो कोई स्त्री थी | वो चित लेटी थी फिर मैंने टॉर्च जलाकर चेहरा देखा , वो मेरी बड़ी ममेरी बहन रागनी थी | शायद बिस्तर पर जगह देखकर और मुझे बच्चा समझकर मामी ने उसे भेज दिया था
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