कमला की चुदाई सेक्स कहानियां
#9
रेखा बोली "रुक क्यों गये, मारो गाम्ड, पूरा लंड जड़ तक उतार दो, साली की गांड फ़ट जाये तो फ़ट जाने दो, अपनी डा~म्क्टर दीदी से सिलवा लेम्गे. वह मुझ पर मरती है इसलिये कुछ नहीं पूछेगी, चुपचाप सी देगी. हाय मुझे इतना मजा आ रहा है जैसा तुमसे पहली बार मराते हुए भी नहीं आया था. काश मैम मर्द होती तो इस लौम्डिया की गांड खुद मार सकती"

अमर कुछ देर रुका पर अम्त में उससे रहा नहीं गया, उसने निश्चय किया कि कुछ भी हो जाये वह रेखा के कहने के अनुसार जड़ तक अपना शिश्न घुसेड़ कर रहेगा. उसने कचकचा के एक जोर का धक्का लगाया और पूरा लंड एक झटके में जड़ तक कमला की कोमल गांड में समा गया. अमर को ऐसा लग रहा था कि जैसे उसका सुपाड़ा कमला के पेट में घुस गया हो. कमला ने एक दबी चीख मारी और अति यातना से तड़प कर बेहोश हो गयी.

अमर अब सातवें आसमान पर था. कमला की पीड़ा की अब उसे कोई परवाह नहीं थी. मुश्कें बन्धी हुई लड़की तो अब उसके लिये जैसे एक रबर की सुंदर गुड़िया थी जिससे वह मन भर कर खेलना चाहता था. हां, टटोल कर उसने यह देख लिया कि उस कमसिन कली की गांड सच में फ़ट तो नहीं गयी. गुदा के बुरी तरह से खिंचे हुए मुंह को सकुशल पाकर उसने एक चैन की साम्स ली.

अब बेहिचक वह अपनी बीवी की बाहों में जकड़े उस पट पड़े बेहोश कोमल शरीर पर चढ़ गया. अपनी बाहों में भर के वह पटापट कमला के कोमल गाल चूमने लगा. कमला का मुंह रेखा के स्तन से भरा होने से वह उसके होंठों को नहीं चूम सकता था इसलिये बेतहाशा उसके गालोम, कानों और आम्खों को चूमते हुए उसने आखिर अपने प्यारे शिकार की गांड मारना शुरू की.

रेखा ने पूछा "कैसा लग रहा है डार्लिम्ग?" अमर सिर्फ़ मुस्कराया और उसकी आम्खों मे झलकते सुख से रेखा को जवाब मिल गया. उसकी भी बुर अब इतनी चू रही थी कि कमला के शरीर पर बुर रगड़ते हुए वह स्वमैथुन करने लगी. "मारो जी, गांड मारो, खूब हचक हचक कर मारो, अब क्या सोचना, अपनी तमन्ना पूरी कर लो" और अमर बीवी के कहे अनुसार मजा ले ले कर अपनी बहन की गांड चोदने लगा.

पहले तो वह अपना लंड सिर्फ़ एक दो इम्च बाहर निकालता और फ़िर घुसेड़ देता. मक्खन भरी गांड में से 'पुच पुच पुच' की आवाज आ रही थी. इतनी टाइट होने पर भी उसका लंड मस्ती से फ़िसल फ़िसल कर अन्दर बाहर हो रहा था. इसलिये उसने अब और लम्बे धक्के लगाने शुरू किये. करीब ६ इम्च लंड अन्दर बाहर करने लगा. अब आवाज 'पुचुक, पुचुक, पुचुक' ऐसी आने लगी. अमर को ऐसा लग रहा था मानों वह एक गरम गरम चिकनी बड़ी सकरी मखमली म्यान को चोद रहा है. उसके धैर्य का बाम्ध आखिर टूट गया और वह उछल उछल कर पूरे जोर से कमला की गांड मारने लगा.

अब तो 'पचाक, पचाक पचाक' आवाज के साथ बच्ची मस्त चुदने लगी. अमर ने अब अपना मुंह अपनी पत्नी के दहकते होंठों पर रख दिया और बेतहाशा चूंआ चाटी करते हुए वे दोनों अपने शरीरों के बीच दबी उस किशोरी को भोगने लगे.

अमर को बिलकुल ऐसा लग रहा था जैसे कि वह किसी नरम नरम रबर की गुड़िया की गांड मार रहा है. वह अपने आनन्द की चरम सीमा पर कुछ ही मिनटों में पहुम्च गया और इतनी जोर से स्खलित हुआ जैसा वह जिन्दगी में कभी नहीं झड़ा था. झड़ते समय वह मस्ती से घोड़े जैसा चिल्लाया. फ़िर लस्त पड़कर कमला की गांड की गहरायी में अपने वीर्यपतन का मजा लेने लगा. रेखा भी कमला के चिकने शरीर को अपनी बुर से रगड़ कर झड़ चुकी थी. अमर का उछलता लंड करीब पाम्च मिनट अपना उबलता हुआ गाढ़ा गाढ़ा वीर्य कमला की आम्तों में उगलता रहा.

झड़ कर अमर रेखा को चूंअता हुआ तब तक आराम से पड़ा रहा जब तक कमला को होश नहीं आ गया. लंड उसने बालिका की गांड में ही रहने दिया. कुछ ही देर में कराह कर उस मासूम लड़की ने आम्खें खोलीम. अमर का लंड अब सिकुड़ गया था पर फ़िर भी कमला दर्द से सिसक सिसक कर रोने लगी क्योंकि उसकी पूरी गांड ऐसे दुख रही थी जैसे किसी ने एक बड़ी ककड़ी से चोदी दी हो.

उसके रोने से अमर की वासना फ़िर से जागृत हो गयी. पर अब वह कमला का मुंह चूमना चाहता था. रेखा उस के मन की बात समझ कर कमला से बोली "मेरी ननद बहना, उठ गयी? अगर तू वादा करेगी कि चीखेगी नहीं तो तेरे मुंह में से मैम अपनी चूची निकाल लेती हूं." कमला ने रोते रोते सिर हिलाकर वादा किया कि कम से कम उसके ठुम्से हुए मुंह को कुछ तो आराम मिले.

रेखा ने अपना उरोज उसके मुंह से निकाला. वह देख कर हैरान रह गयी कि वासना के जोश में करीब करीब पूरी पपीते जितनी बड़ी चूची उसने कमला के मुंह में ठूंस दी थी. "मजा आया मेरी चूची चूस कर?" रेखा ने उसे प्यार से पूछा. घबराये हुई कमला ने मरी सी आवाज में कहा "हाम, भाभी" असल में उसे रेखा के स्तन बहुत अच्छे लगते थे और इतने दर्द के बावजूद उसे चूची चूसने में काफ़ी आनम्द मिला था.


रेखा अब धीरे से कमला के नीचे से निकल कर बिस्तर पर बैठ गयी और अमर अपनी बहन को बाहों में भरकर उसपर चड़ कर पलंग पर लेट गया. उसने अपनी बहन के स्तन दोनों हाथों के पम्जों में पकड़े और उन छोटे छोटे निपलों को दबाता हुआ कमला का मुंह जबरदस्ती अपनी ओर घुमाकर उसके गुलाबी होंठ चूमने लगा. बच्ची के मुंह के मीठे चुम्बनों से अमर का फ़िर खड़ा होने लगा.

अमर ने अब अपने पंजों में पकड़े हुए कोमल स्तन मसले और उन्हें स्कूटर के हौर्न जैसा जोर जोर से दबाने लगा. हंसते हुए रेखा को बोला "डार्लिन्ग, मेरी नई स्कूटर देखी, बड़ी प्यारी सवारी है, और हौर्न दबाने में तो इतना मजा आता है कि पूछो मत." रेखा भी उसकी इस बात पर हम्सने लगी.

चूचियां मसले जाने से कमला छटपटायी और सिसकने लगी. अमर को मजा आ गया और अपनी छोटी बहन के रोने की परवाह न करता हुआ वह अपनी पूरी शक्ति से उन नाजुक उरोजों को मसलने लगा. धीरे धीरे उसका लंड लम्बा होकर कमला की गांड में उतरने लगा. कमला फ़िर रोने को आ गयी पर डर के मारे चुप रही कि भाभी फ़िर उसका मुंह न बांध दे.

लौड़ा पूरा खड़ा होने पर अमर ने गांड मारना फ़िर शुरू कर दिया. जैसे उसका लम्बा तन्नाया लंड अन्दर बाहर होना शुरू हुआ, कमला सिसकने लगी पर चिल्लायी नही. रेखा मुस्कायी और कमला से बोली. "शाबाश बेटी, बहुत प्यारी गाम्डू लड़की है तू, अब भैया के लंड से चुदने का मजा ले, वे रात भर तुझे चोदने वाले हैम."

रेखा उठ कर अब अमर के आगे खड़ी हो गयी. "मेरी चूत की भी कुछ सेवा करोगे जी? बुरी तरह से चू रही है" अमर ने रेखा का प्यार से चुम्बन लिया और कहा. "आओ रानी, तुमने मुझे इतना सुख दिया है, अब अपनी रसीली बुर का शरबत भी पिला दो, मैम तो तुंहें इतना चूसूंगा कि तेरी चूत तृप्त कर दूम्गा" रेखा बोली "यह तो शहद है बुर का, शरबत नहीम, बुर का शरबत तो मैं तुम्हें कल बाथरूम में पिलाऊंगी." रेखा की बात अमर समझ गया और उस कल्पना से की इतना उत्तेजित हुआ कि अपनी पत्नी की चूत चूसते हुए वह कमला की गांड उछल उछल कर मारने लगा.

अब उसने अपनी वासना काफ़ी काबू में रखी और हचक हचक कर अपनी छोटी बहन की गांड चोदने लगा. स्तनमर्दन उसने एक सेकम्ड को भी बंद नहीं किया और कमला को ऐसा लगने लगा जैसे उसकी चूचियां चक्की के पाटों में पिस रही होम. इतना ही नहीम, उसके निपल उंगलियों में लेकर वह बेरहमी से कुचलता और खींचता.

"हफ़्ते भर में मूम्गफ़ली से कर दूम्गा तेरे निपल कम्ला. चूसने में बहुत मजा आता है अगर लम्बे निपल होम." वह बोला. बीच बीच में अमर रेखा की चूत छोड़ कर प्यार से कमला के गुलाबी होंठ अपने दाम्तों में दबाकर हल्के काटता और चूसने लगता. कभी उसके गाल काट लेता और कभी गरदन पर अपने दाम्त जमा देता. फ़िर अपनी बीवी की बुर पीने मे लग जाता.

इस बार वह घम्टे भर बिना झड़े कमला की मारता रहा. जब वह आखिर झड़ा तो मध्यरात्रि हो गयी थी. रेखा भी बुर चुसवा चुसवा कर मस्त हो गयी थी और उसकी चूत पूरी तरह से तृप्त हो गई थी.

अपने शरीर का यह भोग सहन न होने से आखिर थकी-हारी सिसकती हुई कमला एक बेहोशी सी नीम्द में सो गयी. बीच बीच में गांड में होते दर्द से उसकी नीम्द खुल जाती तो वह अमर को अपनी गांड मारते हुए और रेखा की चूत चूसते हुए पाती.


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