मेरी डायरी के कुछ पन्ने सेक्स कहानियाँ
#8
रात को खाना खाने के बाद माँ जब किचेन में बरतन रखने गयी तभी मैंने हेयर रिमूवर और गोलियां देते हुए दीदी के कान में फुसफुसाया कि तुम रात को मेरे पास आना मै दरवाजा अन्दर से बंद नहीं करूंगा (उनको भैया भाभी वाला कमरा मिला था जो माँ के कमरे के बाईं ओर था ओर मेरा कमरा माँ के कमरे के दाईं तरफ था )| फिर मै बेड पर लेटकर दीदी का इन्तजार करने लगा , इन्तजार करते करते मैंने मस्तराम कि बुक निकालकर फिर से एकबार भाई बहन कि चुदाई कि कहानी पढ़ा और पढ़कर अपने कसमसाते लौड़े को सहलाते हुए शान्त्वना देने लगा कि तू ज्यादा तड़प मत अभी तुझे दीदी कि रसीली चूत और मखमली गांड मारने को मिलेगा | अपने लंड को सहलाते सहलाते पता नहीं मुझे कब नींद आ गयी और जब नींद खुली तो देखा सबेरा हो गया है और माँ आँगन में झाडू लगा रही है और दीदी वही बरामदे में खड़ी है | मुझे उनपर बहुत गुस्सा आया कि वो रात को मेरे पास क्यों नहीं आयी फिर बाथरूम जाकर फ्रेश होकर ‘मोती ’ (हमारा कुत्ता ) को बाहर सैर कराने ले गया | लौटकर मै दीदी से बात करने का मौक़ा ढूंढने लगा पर दीदी थी कि माँ के साथ ही चिपकी चिपकी घूम रही थी , आखिर में नाश्ता करने के बाद दीदी को लंच बनाने को कहने के बाद जब माँ कालेज जाने लगी तो मेरा अंतर्मन खुशी से झूम उठा लेकिन जैसे ही मै बाहर का गेट बंद करके लौटा वैसे ही दीदी झट से बाथरूम में नहाने के लिए घुस गयी | मेरी उत्तेजना बढती जा रही थी साथ ही गुस्सा भी कि आखिर क्यों वो शरारत से मुझे खिंझा रही है | अगर छोटी होती तो शायद डांटता भी पर ये तो बड़ी थी , मुझे रह रहकर कल देखे फिल्म का सीन याद आ रहा था जिसमे एक प्रौढ़ शिक्षक अपने गर्ल स्टुडेंट कि गलती पर उसे बेंत से चूतरों को नंगा करके मारता है फिर प्यार से चूतरों को चुमते चाटते हुए पीछे से ही चूत को चूसना शुरू कर देता है फिर जबरदस्त ढंग से उस लड़की को पेलता है ,सीन याद करके ही मेरा लौड़ा निकर में तम्बू बना हुआ था |आखिर में लगभग एक घंटे बाद जब दीदी बाथरूम से निकली तो उसने अपने शरीर पर केवल टावेल लपेटे हुए थी जिसका उपरी शिरा बूब्स के बीच में कसा था जिसके कारण आधी से अधिक मदमस्त चूंचियाँ बाहर को छलक रही थी और निचला शिरा चूत को बस ढके था | मै लपककर उनके पास पहुंचा और उन्हें अपनी बाहों में भरना चाहा तो उन्होंने हाथ के इशारे से रोक दिया , वो कुछ बडबडा रही थी शायद शिवजी की आरती गा रही थी फिर वो टावेल में ही पूजा घर में चली गयी |
मै बाहर खडा कुंठित हो रहा था , जब वो बाहर मुस्कुराते हुए आयी तो मै उनके पीछे पीछे उनके कमरे की और चल पडा | पीछे से टावेल गांड को पूरी तरह से ढक भी नहीं पा रहा था , चूतरों का मांसल उभार नीचे से झलक रहा था | मै खींजकर रूखे शब्दों में बोला –दीदी ये क्या है ? तुम रातको मेरे पास क्यों नहीं आयी ?( तबतक दीदी झुककर अटैची से अपने कपडे निकालने लगी ..आ ..ह .. क्या नजारा था ..पीछे से दीदी की नशीली चूत बाहर को झांक रही थी जिसके साथ मिलकर उनकी मखमली गांड चार चाँद लगा रही थी ,चूत की फांके खुली हुई थी और अपने मर्दन का आमंत्रण दे रही थी | मै आगे बढते बढते रूक गया और वहीँ कुर्सी पर बैठकर नज़ारे लेने लगा )तब दीदी पहली बार खुलकर बोली – सॉरी भाई ,गलती हो गयी .. बुआजी के सोने का इन्तजार करते करते मुझे खुद ही नींद आ गयी | मै खींजकर बोला – तुम्हे पता है मै सारी रात लौड़ा हाथ में थामे किस तरह से तड़पता रहा हूँ और तुम बोलती है की गलती हो गयी ..गलती हुई है तो सजा भी भुगतनी पड़ेगी !!
वो मेरी तरफ घूमकर पलटी और अपने कमर पे हाथ रखकर बोली - मुझे हर सजा मंजूर है , मेरे राजा भैया !! बोलो क्या कहते हो ? मेरे मन में एक शैतानी चमक उभरी ..मै बोला -रूको मै अभी आता हूँ और कमरे से निकलकर सीधा बाथरूम गया और पेशाब करके अपने कमरे में आकर वेसलीन का डब्बा जेब में डाला और खिड़की के परदे का लकड़ी का डंडा निकला साथ ही मस्तराम एवं पिक्चर वाली बुक लेकर दीदी के कमरे में लौटा और फिर कुर्सी पर बैठ गया तथा डंडा हिलाने लगा | मेरे हाथ में लकड़ी का डंडा देखकर दीदी सहम गयी और बोली – भैया !! तुम मुझे मरोगे क्या ? (अपने सामने बड़ी उम्र की रिश्तेदार लगभग नंगी औरत तो डरते देख मेरा लंड फिर से तनतना उठा) मै थोडा कठोर और आदेशात्मक स्वर में बोला –दीदी तुम चुप रहो ! जैसा मै कहता हूँ वैसा करती जाओ ..थोड़ा आगे आओ ..वो थोड़ा आगे आयी तो मैंने आदेश दिया – अपना कान पकड़ो ! उसने कान पकड़ लिया , फिर मैंने डंडे को उसके बूब्स से सटाया और फिर टावेल के फोल्ड में फंसाकर खिंच दिया ..टावेल खुलकर नीचे जमीन पर गिर पडा | अब दीदी का संगमरमरी तराशा नंगा बदन मेरे सामने था , उनके हाथ कान पर थे और आँखे शर्म के कारण जमीन पे लगी थी ..जो बुर रात के अँधेरे में मेरे विकराल लंड से द्वन्द युध्ध करने का दुह्साहस कर सफलता पाई थी वही दिन के उजाले में अपने नंगेपन का एहसास कर जांघो के जोड़ में संकुचित होती जा रही थी | चूत को चिकना करके दीदी ने तो कमाल ही कर दिया था , वह अपने साइज से काफी छोटी लग रही थी ..बिलकुल १६ साल की लौंडिया की चूत की तरह …लगता ही नहीं था की इस चूत ने एक बच्चा पैदा किया है और तीन तीन लंडो का वार झेला है | मैंने डंडे के अगला शिरा को चूत के होतो को छुलाया ..वो चिहुंकी और मेरी तरफ होटों को काटते हुए देखने लगी | मै शुष्क स्वर में बोला - दीदी अपनी टाँगे फैलाओ ! जैसे ही उसने खड़े खड़े अपनी टाँगे फैलाई वैसे ही बुर के पपोटे खुल गए तब मैंने अपने डंडे को बुर के फांको के बीच फिराने लगा ..दीदी सिहर उठी ..हांलाकि लकड़ी का डंडा आवेश का कुचालक होता है फिर भी उस समय दीदी के रोम रोम का सिहरन डंडे पर महसूस किया जा सकता था ..मैंने आहिस्ते आहिस्ते डंडे को चूत की दरारों में फिराने लगा ..दीदी पूरी गरम हो चुकी थी , इस बात का अंदाजा ऐसे लग रहा था की जब मै डंडे के मूवमेंट को रोक देता तो वो खुद ही हौले हौले कमर हिला कर अपनी चूत को डंडे पर घिसने लगती और जब मैंने डंडा हटाया तो वो चूतरस से भींगा हुआ था |
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