मेरी डायरी के कुछ पन्ने सेक्स कहानियाँ
#9
दीदी जब बाथरूम से वापस आयी तो आते ही शिकायत करने लगी – ये क्या किया राजन ! सारा मुँह गंदा कर दिया , मुझे तो उलटी आ गयी | मै बोला कुछ नहीं , मेरी नजरें उनके पैरों के बीच सजी चिकनी बुर पर टिकी थी | अपनी लगातार निहारी जा रही बुर को देखकर शायद उन्हें कुछ शर्म महसूस होने लगी , तभी वो अपने पैरो को जोड़कर टेबल के किनारे दीवाल से सटकर खडी हो गयी | मै उनके पास जाकर उनके सामने घुटनों के बल बैठ गया , अब मेरी आँखों के ठीक सामने उनकी बुर थी और उसपर पानी की बुँदे चमक रही थी , शायद मेरे पैर के अंगूठे से झड़ने के कारण वो अपनी बुर को भी धो कर आयी थी | मैंने अपनी एक अंगुली से उनके बुर की दरारों को छेड़ा, उनके सारे शरीर में सिहरन दौड़ गयी फिर मैंने बोला – दीदी अपने पैरों को खोलो | उन्हें लगा की मै उनका बुर ठीक से देखना चाहता हूँ , उन्होंने टाँगे फैलाई , मैंने अपनी जीभ निकालकर उनकी बुर को चाटना शुरू कर दिया | दीदी मचल गयी , शायद उनकी बुर को पहली बार किसी खुरदुरी जीभ ने स्पर्श किया था , वो गनगना रही थी पर मै पूरी तन्मयता से उनकी बुर चाटते जा रहा था साथ ही अपने दोनों हाथों से उनके चूतरों को मसल रहा था , अचानक मेरे बाएं हाथ की बीच की उंगली उनके गांड के छेद से टकराया , वो उछल पडी और मेरे सर को पकड़ लिया और मस्ती में आकर अपनी बुर को मेरे मुंह से रगड़ने लगी | मैंने ऊँगली का दबाब गांड के छेद पर बनाया परन्तु वो अन्दर घुस ही नहीं पा रहा था | तभी मैंने अपनी जीभ को बुर के अन्दर घुसेड दिया , अब दीदी मस्ती में आँखे बंदकर सिसियाने लगी और मेरे सर को अपने बुर पर दबाने लगी | मैंने दायें हाथ को उनके चुतरों से मुक्त कर जेब से वेसलीन का ट्यूब निकालकर ढेर सारा वेसलीन अपनी उँगलियों में चुपड़ लिया और फिर हाथ को पीछे ले जाकर बाए हाथ की अँगुलियों में भी चुपड़ लिया और ढेर सारा वेसलीन उँगलियों से उनके गांड के छेद पर लगा दिया और फिर बीच की उंगली का दबाब छेद पर बढाया , इसबार बड़ी सरलता से मेरी उंगली बेआवाज छेद में घुस गयी | अबकी वो अपनी चीख रोक न सकी और चिल्लाई -आ ..आ ..ह ..ह .हह .......सा ..ला ..............मार …डा ..ला … रे ….पर मै रुका नहीं और ऊँगली के अन्दर बहार करने की रफ़्तार बढाता रहा बल्कि अब तो मै अपने दोनों हाथ की बीच की ऊँगली को एक साथ उनके गांड में अन्दर बाहर कर रहा था |वो लगातार बड़बड़ाये जा रही थी , अचानक उसने मेरे सर को अपनी पूरी ताकत से बुर पर दबाना शुरू कर दिया और कांपते हुए झड़ने लगी ..आ..ह.ह......मै ... ग...ई...ई...., उनके बुर से निकलता नमकीन पानी मेरी जीभ को तर कर रहा था | ये स्वाद मेरे लिए बिलकुल नया था , मै बुर से निकलते पानी की एक एक बूंद को चाट गया | फिर दीदी निढाल होकर बेड पर वैसे नंगी ही पसर गयी |
इस दौरान मेरा लंड निकर में तनकर दर्द करने लगा था , मैंने फ़ौरन अपना निकर निकालकर उसे मुक्त कर दिया | अब मेरा लंड अपने पुरे जोश में आकर हवा में लहराने लगा लेकिन उसकी सहेली बेदम हो सुस्त पडी थी | मैंने उनसे पुचा – दीदी इसका क्या होगा , वो हडबडाकर जल्दी से बोली – भाई .. अभी नहीं ! खाना खाने के बाद दोपहर को कर लेना , मै कहीं भागी थोड़े जा रही हूँ , अभी थोडा आराम करने दो , मुझे खाना भी बनाना है , ये कहते हुए वो पेट के बल लेट गयी , उसे लगा की बुर के ढक जाने से शायद मेरा जोश ठंडा पद जाएगा | परन्तु मै कहाँ माननेवाला था , खड़े लंड के कारण मै बेकरार था जो उनके मांसल गांड को देखकर और कड़क हो गया था | मैंने दीदी के गांड पर हाथ फेरना शुरू कर दिया | पहले तो वो थोड़ा इनकार करती रही - सोने दे भाई ! क्यों तंग कर रहा है ? पर मेरी उंगलियाँ गांड के दरारों में घुसकर छेद से टकराया तो वो शांत होकर मजे लेने लगी | गांड का छेद वेसलीन से गीला तो था ही इसलिए मैंने हाथ के एक अंगूठे को गांड में घुसाकर अन्दर बाहर करने लगा | अब दीदी के चुतरों ने थिडकना चालू कर दिया और स्वमेव ही बेड से उठने लगा | मैंने दुसरे हाथ के अंगूठे को भी धीरे धीरे उनके गांड में घुसा दिया | दीदी थोडा ऐंठी और हलके से कराही ….. पर मैंने उंगली चोदन जरी रखा , मै एक अंगूठे को बाहर निकालता तो उसी समय दुसरे को अन्दर पेलता…दुसरे को निकालता तो पहले को पेलता ..पुरे रिदम के साथ मै उनके नाजुक सी छोटी छेद को चौड़ा करने में लगा था ताकी लंड डालते समय दिक्कत ना हो | दीदी गरम होकर बडबड़ा रही थी - मै ..तो ..बच्चा …ही ..समझती ..थी …..सा …ला … पूरा …..ह ..ह ..रा ..मी …नि ..क ..ला ……में ..री ….गां..ड…..भी …न .ही ….छो..डा …..उनकी सेक्सी आवाज सुनकर मेरा तना लंड फुफकारने लगा | वेसलीन को लंड पे चुपड़कर अपने फनफनाते लौड़े को गांड के छेद पे टिकाया , दीदी को मेरे अगले हमले का एहसास हो चुका था परन्तु इससे पहले वो संभलती मैंने एक जोरदार झटका मारकर लंड को तकरीबन एक तिहाई गांड में पेल दिया ..वो जोर से चींखी …मैंने फ़ौरन पीठ पे झुककर अपने हाथों से उनका मुंह बंद कर दिया …वो गुं..गुं ..करते हुए मचलने लगी और गांड चुदाई के दर्द से बचने के लिए अपने पैरों को सीधा करने लगी जिससे गांड के छेद का छल्ला लंड पर कस गया , वो तुरंत दर्द से दोहरी होकर पुनः अपने गांड को उठाकर चुतरों को फैला लिया | दर्द से तो मेरा भी बुरा हाल था , उस लंड को दीदी के इस पोज से थोड़ा राहत मिला | फिर मैंने उनके मुह से हाथ हटाकर उनके उभरे चुतरों को पकड़कर धीरे धीरे लंड को अन्दर बाहर करने लगा और आहिस्ते आहिस्ते लंड को क्रमशः अन्दर सरकाने लगा | मेरे लंड पर खून की बुँदे भी चमक रही थी …पहले तो मै डरा, पर फिर सोचा शायद चूत की तरह गांड का भी शील होता होगा | मै धीरे धीरे अपने चोदने की रफ़्तार बढ़ा रहा था और अब दीदी भी गरम चुदासी होकर बडबड़ा रही थी – अ.आ.ज पहली बार मेरी गांड में कोई लंड गया है ….फाड़ डाल मेरी गांड को भाई … और जोर से …और जोर से …अब रोकना मेरे लिए बहुत मुश्किल था …मै झड़ने लगा …मेरे लंड से निकलता गरम गरम लावा दीदी की गांड को भरता चला गया …उनकी आँखे भी मस्ती में मुंदती चली गयी …मै निढाल होकर उनके बगल में लेट गया …दीदी की आँखे अभी तक बंद थी ..शायद अभी भोगी आनंद का लुफ्त उठा रही थी |
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